एक हजार युवा परिवार छोड़ और मोह माया त्याग बन जाएंगे नागा संन्यासी, अखाडा गंगा किनारे संन्यास परंपरा के तहत दीक्षा देगा। 

हरिद्वार कुंभ: हरिद्वार कुंभ मेले में करीब एक हजार युवा अपने परिवार और तमाम दुनियावी मोह माया को त्याग कर नागा साधु बनने जा रहे हैं। इन सभी को हरिद्वार कुंभ मेले में नागा संन्यासियों का सबसे बडा अखाडा जूना अखाडा पांच अप्रैल को गंगा किनारे संन्यास परंपरा के तहत दीक्षा देगा। हर कुंभ में इसी तरह नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाती है। लेकिन सबसे अहम ये है कि आखिर नागा संन्यासी बनने के लिए क्या योग्यताएं चाहिए होती है और क्या नागा साधु बनने के बाद ये युवा अपने घर—परिवार से रिश्ता रख पाते हैं या नहीं।

 

कया है नागा साधु बनने की परपंरा
जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय सचिव व कुम्भ मेला प्रभारी श्रीमहंत महेशपुरी ने बताया कि सन्यासी अखाड़ो की परम्परा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नागा सन्यासी के रूप में दीक्षित किए जाने की परम्परा है। जो केवल चार कुम्भ नगरों हरिद्वार, उज्जैन, नासिक तथा प्रयागराज में कुम्भ पर्व के अवसर पर ही आयोजित की जाती है। सन्यास दीक्षा के लिए सभी चारों मढ़ियों जिसमेें चार,सोलह,तेरह व चैदह मढ़ी शामिल है,के नागा सन्यासियों का पंजीकरण किया जाता है। उन्होने बताया कि जो भी पंजीकरण का आवेदन आते हैं उन सभी की बारीकी से जांच करने के बाद ही योग्य एवं पात्रों का चयन नागा साधु बने के लिए किया जाता है।

किन परीक्षाओं से गुजरना पडता है नागा साधु को

श्रीमहंत महेशपुरी ने बताया नागा सन्यासी बनने के कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसके लिए सबसे पहले नागा सन्यासी को महापुरूष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है। तीन वर्षो तक महापुरूष के रूप् में दीक्षित सन्यासी को सन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरू सेवा के साथ साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य करने पड़ते है। तीन वर्ष की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुम्भ पर्व पर उसे नागा बनाया जाता है। उन्होने बताया नागा सन्यास प्रक्रिया प्रारम्भ होने पर सबसे पहले सभी इच्छुक सन्यासी सन्यास लेने का संकल्प करते हुए पवित्र नदी में स्नान कर वह संकल्प लेता है और अपने जीवनकाल में ही अपना श्राद व तपर्ण कर मुण्डन कराता है।

तत्पश्चात सांसरिक वस्त्रों का त्याग कर कोपीन दंड, कंमडल धारण करता है। इसके बाद पूरी रात्रि धर्मध्वजा के नीचे बिरजा होम में सभी सन्यासी भाग लेते है और चारू दूध,अज्या यानि घी की पुरूष सुक्त के मंत्रो के उच्चारण के साथ रातभर आहूति देते हुए साधना करते है। यह समस्त प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर की देख रेख में सम्पन्न होती है। प्रातःकाल सभी सन्यासी पवित्र नदी तट पर पहुचकर स्नान कर सन्यास घारण करने का संकल्प लेते हुए डुबकी लगाते है तथा गायत्री मंत्र के जाप के साथ सूर्य, चन्द्र,अग्नि, जल, वायु,पृथ्वी, दशो दिशाओं सभी देवी देवताओं को साक्षी मानते हुए स्वयं को सन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाते है।

तत्पश्चात आचार्य महामण्डलेश्वर द्वारा नव दीक्षित नागा सन्यासी को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाता है जिसे नव दीक्षित नागा सन्यासी तीन बार दोहराता है। इन समस्त क्रियाओं से गुजरने के बाद गुरू अपने शिष्य की चोटी काटकर विधिवत अपना शिष्य बनाते हुए नागा सन्यासी घोषित करता है। चोटी कटने के बाद नागा शिष्य जल से नग्न अवस्था में बाहर आता है और अपने गुरू के साथ सात कदम चलने के पश्चात गुरू द्वारा दिए गए कोपीन दंड तथा कमंडल घारण कर पूर्ण नागा सन्यासी बन जाता है

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