उत्तराखंड में अब दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को झटका, नहीं मिलेगा महंगाई भत्ता, वित्त विभाग ने जारी किया आदेश…….

देहरादून: दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को झटका, नहीं मिलेगा महंगाई भत्ता, वित्त विभाग ने जारी किया आदेशवित्त विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। अपर मुख्य सचिव (वित्त) आनंद बर्द्धन के जारी आदेश में कहा गया कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की तरह न्यूनतम वेतनमान व महंगाई भत्ता दिया जाना वित्तीय नियमों के विपरीत है।

उत्तराखंड के विभिन्न विभागों में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को एक नवंबर 2023 से महंगाई भत्ता नहीं मिलेगा। इससे वन विभाग व अन्य विभाग के उन दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को झटका लगा है, जिन्हें डीए का लाभ मिल रहा है।वित्त विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। अपर मुख्य सचिव (वित्त) आनंद बर्द्धन के जारी आदेश में कहा गया कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की तरह न्यूनतम वेतनमान व महंगाई भत्ता दिया जाना वित्तीय नियमों के विपरीत है। इसका कोई विधिक आधार नहीं है। अपने इस आदेश में वित्त विभाग ने उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसलों का भी उल्लेख किया है।

सूत्रों के मुताबिक, वित्त विभाग को महंगाई भत्ता न देने का यह आदेश वन विभाग के उन करीब 611 दैनिक श्रमिकों की वजह से जारी करना पड़ा है जो कोर्ट के आदेश पर न्यूनतम वेतन के साथ महंगाई भत्ता भी ले रहे हैं। इसके अलावा कुछ अन्य विभागों में दैनिक वेतन भोगी न्यूनतम वेतन ले रहे हैं, जिन्हें मासिक आधार पर राशि का भुगतान किया गया।

वित्त विभाग का मानना है कि दैनिक श्रमिकों को कार्य दिवसों में किए गए कार्य के आधार पर मजदूरी दी जानी चाहिए। ऐसे मामलों में श्रम विभाग के आदेश के आधार बनाकर दैनिक वेतन भोगी न्यूनतम वेतन के साथ डीए का लाभ ले रहे हैं। वित्त विभाग ने 16 जून 2003 के कार्मिक विभाग के आदेश के हवाले से कहा कि दैनिक वेतन कर्मचारी समान प्रकृति का कार्य करने वाले नियमित कर्मचारी की तरह वेतनमान पाने का हकदार नहीं है।

दूरगामी नकारात्मक प्रभाव के चलते लिया फैसला
वित्त विभाग का यह भी मानना है कि प्रदेश में वर्ष 2002 से दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक है।

श्रम विभाग के शासनादेश को आधार पर बनाकर कई न्यायालयों में न्यूनतम वेतन दिए जाने की याचिकाएं दायर की गईं हैं, जबकि यह राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों एवं राज्य के वित्तीय प्रबंधन के अनुरूप नहीं है। चतुर्थ श्रेणी के पदों पर आवश्यकतानुसार आउटसोर्स से मानदेय पर तैनाती होती है, इसलिए प्रशासनिक, विधिक व वित्तीय प्रावधानों तथा राज्य की राजकोषीय स्थिति पर इसके दूरगामी नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए कैबिनेट ने यह नीतिगत निर्णय लिया है।

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