उत्तराखंड में बीजेपी के बाद अब कांग्रेस में बगावत ही बगावत, कई सीटों पर नाराजगी….
देहरादून : उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है. प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद राज्य की दोनों बड़ी पार्टियों में बगावत का बिगुल बज गया है. जो पार्टियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. गढवाल से लेकर कुमाऊं तक बगावत के स्वर बुलंद हो गए है. कई नेता टिकट न मिलने से नाराज है तो कई नेता निर्दलिय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके है।
घनसाली के भीमलाल आर्य हो या धनोल्टी में डॉ वीरेन्द्र सिंह रावत, देहरादून, सहसपुर,राजपुर, हरिद्वार सीट लगभग अधिकतर सीटों पर नेता नाराज है और पार्टी पर आरोप लगा रहे है।
बता दें कि घनसाली से पिछली बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े भीमलाल आर्य को टिकट नहीं दिया गया. जिसके बाद आर्य ने पार्टी पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. धनौल्टी में डॉ वीरेन्द्र सिंह रावत को टिकट नहीं मिलने नाराज बताए जा रहे हैं ।
यमुनोत्री पिछली बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े संजय डोभाल की बजाय इस बार दीपक बिजल्वाण को मौका दे दिया गया है. जिसके बाद डोभाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. कर्णप्रयाग में टिकट न मिलने से सुरेश बिष्ट ने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया है . पौड़ी सीट से टिकट न मिलने पर पूर्व जिला पंचायत सदस्य तामेश्वर आर्य नाराज हैं. नाराजगी के सुर देहरादून जिले की सहसपुर सीट से लेकर राजपुर रोड सहित हरिद्वार में भी दिखा है।
कुमाऊं और तराई क्षेत्र में भी कई सीटों पर कांग्रेस नेताओं की नाराजगी झलक रही है कुमाऊं की 29 में से जिन 25 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया गया है उनमें कई सीटों पर बदीलत के सुर सुनाई दे रहे हैं. कुमाऊं में बागेश्वर , गंगोलीहाट , किच्छा , गदरपुर , बाजपुर , सितारगंज आदि सीटों पर बंगावत होती दिख रही है. गौरतलब है कि कांग्रेस ने शनिवार देर रात्रि सूबे की 70 में से 53 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया था. जिसके बाद से सत्ताधारी भाजपा के बाद अब विपक्षी कांग्रेस में भी टिकट बँटवारे के बाद बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं।
टिकट बँटते ही नाराजगी के बोल मुखर होने लगे हैं. सत्रह सीटों पर पहले ही पेंच सुलझाने में पार्टी के पसीने छूट रहे हैं और कई सीटों पर बागी चुनाव लड़ने को ताल ठोकते पार्टी नेताओं ने हाईकमान के होश उड़ा दिए हैं. हालांकि जहां एक और बीजेपी रूठों को नहीं मना पा रही है तो वहीं कांग्रेस किस तरह अपने रूठे नेताओं को मनाती है. वो दिलचस्प होगा।