EXCLUSIVE: ड्रोन से टनल का जियोग्राफिकल मैपिंग कर रहा NDRF, मिलेगी जिंदा लोगों की जानकारी
एनडीआरएफ अलग-अलग तकनीकों के माध्यम से ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिए ब्लॉक टनल का जियो सर्जिकल स्क्रीनिंग करा रहा है ताकि टनल के अंदर फंसे जिंदा लोगों की जानकारी मिल सकें।
देहरादून: चमोली में आई भीषण आपदा को दो दिन बीत चुके हैं. लेकिन अभी भी तकरीबन ढ़ाई किलोमीटर लंबी सुरंग के अंदर फंसे तकरीबन 35 लोगों का रेस्क्यू चल रहा है. इस रेस्क्यू के दौरान सुरंग में मलबे के पीछे फंसे लोगों को बाहर निकालने का प्रयास लगातार राज्य और केंद्र सरकार की अलग-अलग एजेंसियां कर रही हैं. जिसमें एनडीआरएफ द्वारा कुछ विशेष प्रकार की तकनीक के इस्तेमाल की जा रही हैं.
मिली जानकारी के अनुसार, एनडीआरएफ अलग-अलग तकनीकों के माध्यम से ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिए ब्लॉक टनल का जियो सर्जिकल स्कैनिंग करा रहा है. जिसमें रिमोट सेंसिंग के जरिए टनल की ज्योग्राफिकल मैपिंग कराई जाएगी और टनल के अंदर मलबे की स्थिति के अलावा और भी कई तरह की जानकारियां स्पष्ट हो पाएंगे. इसके अलावा थर्मल स्क्रीनिं या फिर लेजर स्क्रीनिंग के जरिए तपोवन में ब्लॉक पैनल के अंदर फंसे कर्मचारियों के जिंदा होने की कुछ हद तक जानकारियां भी एनडीआरएफ को मिल पाएंगी.
एनडीआरएफ अधिकारियों के मुताबिक, लगातार कई तकनीकों के जरिए चमोली तपोवन में ब्लॉक टनल के अंदर पहुंचने का काम किया जा रहा है. वहीं डाटा कलेक्शन के लिए ड्रोन और हेलीकॉप्टर के माध्यम से कई एजेंसियों को अलग-अलग तकनीकों के माध्यम से अंदर की जानकारियां कलेक्ट करने की जिम्मेदारी दी गई है. जिसके बारे में एनडीआरएफ जल्दी खुलासा करेगी.
कैसे होता है टनल स्कैन
जब भी किसी जगह पर चैनल बनाया जाती है तो उससे पहले भी उस जमीन की भौगोलिक संरचना को समझने के लिए इसी तरह के सर्वे कराए जाते हैं. उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग में मौजूद एक वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया कि जब भी किस जगह पर टनल बनाई जाती है तो रिमोट सेंसिंग के जरिए वहां की ज्योग्राफिकल मैपिंग की जाती है. जिससे जमीन के अंदर की भौगोलिक संरचना से संबंधित डाटा उपलब्ध होता है. साथ ही उन्होंने बताया कि जमीन के अंदर की वस्तुस्थिति को अधिक सटीकता से समझने के लिए ड्रोन से जियो मैपिंग के जरिए अधिक जानकारियां मिलती है. इसके अलावा जमीन के अंदर मौजूद किसी जीवित की जानकारी के लिए थर्मल स्क्रीनिंग की जाती है. लेकिन थर्मल स्क्रीनिंग का दायरा बेहद कम होता है. इसके लिए लीवर के जरिए स्क्रीनिंग की जाती है।