उत्तराखंड में जीरो टॉलरेंस विधानसभा मे आकर खत्म , मृतक आश्रित नौकरी के लिए दर दर भटक रहें, नेताओं के करीबी पा गए नौकरियां, यें सब थे बहुत टैलेंटेड 6 महीने बाद पाई सबने सैलरी जानिए क्यों…..
देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा की करीब 73 लोगों की तदर्थ भर्तियां भी विवादों में आ गई हैं।कैसे बीजेपी के नेताओं और नेताओं के करीबियों के रिश्तेदारों क़ो नौकरीया रेवड़ी की तरह बांटी गई वो किसी से छुपा नहीं हैं हालात हैं हैं कि भले ही तमाम करीबियों कि नियुक्ति 27 दिसंबर 2021 की कर दी गई हो लेकिन सबको सैलरी लगभग 6 महीने बाद नई सरकार बनने के बाद ही मिलनी शुरू हुई क्यूंकि तत्कालीन वित्त सचिव ने फ़ाइल मे हस्ताक्षर ही नहीं किए थे।
वही बैक डोर से तमाम नियुक्तियां हुई लेकिन पिछले 2 साल मे जो कोरोना मे विधानसभा जिन कर्मचारियों की मौत हुई उनके परिजन आज भी मृतक आश्रित मे नौकरी पाने की आस मे भटक रहें हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं कोरोना मे शाकिर खान रक्षक, मीनू पाल परिचायक, दिनेश मंन्द्रवाल समीक्षा अधिकारी यें पूर्व विधायक के बेटे भी थे और पंकज महर रिपोर्टर इनकी मौत कोरोना काल मे हो गई थी लेकिन विडंबना देखिए मृतक आश्रितो क़ो अभी तक नौकरी नहीं हैं लेकिन नेताओं के करीबियों क़ो जमकर नौकरिया बांटी गई हैरत तो यें हैं कि एका एक मंत्रियो और नेताओं के करीबी इतने टेलेंटेड हो गए की उन्होंने विधानसभा की अति कठिन परीक्षा पास कर डाली अगर इन्हें प्रतियोगी परीक्षाए मैं बैठाया जाए वो भी बिना हाकम सिंह जैसो की मदद से तो इनके टेलेंट का पता चल जाएगा।
साफ हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भर्तियों की जांच की मांग उठाई तो शुक्रवार को नियुक्ति पाने वालों के नामों की सूची सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
विपक्ष का आरोप है कि नियम-कायदों को ताक पर रखकर पिछले दरवाजे से सिफारिशों पर लोगों को नौकरियां बांट दी गई। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि जब मैं मुख्यमंत्री था तो मेरे पास विधानसभा की भर्ती की फाइल आई थी। मैंने आदेश दिए थे कि भर्तियां पारदर्शिता पूर्ण ढंग से आयोग के माध्यम से होनी चाहिए। ये भर्तियां कब हुई, मुझे मालूम नहीं। त्रिवेंद्र का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि विधानसभा ने ही करीब 73 पदों पर तदर्थ आधार पर भर्तियां कीं।
कांग्रेस का आरोप है कि भर्ती के नाम पर हजारों अभ्यर्थियों से आवेदन मांगे गए, लेकिन वह भर्ती परीक्षा आयोजित नहीं हुई। उलटे पिछले दरवाजे से मंत्रियों, सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेताओं के करीबियों को नौकरियों पर रख लिया गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने तो बाकायदा उन नेताओं के नाम लिए हैं, जिनके नजदीकी लोगों को विधानसभा में नौकरी पर रखा गया।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व वरिष्ठ विधायक प्रीतम सिंह ने उत्तराखंड विधानसभा के गठन से लेकर अब तक जितनी भी भर्तियां हुई हैं, सभी की जांच की मांग उठा दी है। बता दें कि अंतरिम सरकार के पहले विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत और उनके बाद की सरकारों में स्पीकर रहे यशपाल आर्य, हरबंस कपूर, गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई भर्तियां किसी न किसी वजह से विवादों में रही हैं।
कांग्रेस राज में भी 158 भर्तियों पर भी विवाद रहा
कांग्रेस राज में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के कार्यकाल में 158 भर्तियां भी विवादों में रहीं। आरोप है कि भर्तियां भी नियमों-कायदों को ताक पर रख कर की गईं। राजनेताओं के करीबियों, चेहेतों के सिर्फ एक आवेदन पर नौकरियां दे दी गईं।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह ने सभी भर्तियों पर जांच की मांग उठाकर अपनी ही सरकार में हुई भर्तियों पर भी सवाल खड़े कर दिए
वहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि विस सर्वोच्च सदन, वहां पारदर्शिता होनी चाहिए
विधानसभा की भर्तियों में क्या हुआ, कैसे हुआ, ये मेरे संज्ञान में नहीं है। मैं सैद्धांतिक रूप से इस बात का पक्षधर रहा हूं और रहूंगा कि कहीं पर पारदर्शिता पूर्ण ढंग से नियुक्तियां होनी चाहिए। किसी युवा के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। जब कोई शार्ट कट से नौकरी लेता है तो कष्ट होता है। विधानसभा राज्य का सर्वोच्च सदन है, वहां पारदर्शिता होनी चाहिए।
प्रेमचंद अग्रवाल, वित्त मंत्री एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष मेरे कार्यकाल की भर्तियों को कोर्ट ने वैध करार दिया कांग्रेस किन भर्तियों पर सवाल उठा रही है, स्पष्ट करे। मेरे कार्यकाल में जो भर्तियां विधानसभा में हुई थीं, उन्हें पहले हाईकोर्ट नैनीताल और फिर सुप्रीम कोर्ट भी वैध करार दे चुका है।