उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व में सात हाथियों की मार्मिक कहानियां, जगाई नई उम्मीद, चिल्ला जोन में शुरू हो पाई हाथी सफारी……..

देहरादून: राजाजी टाइगर रिजर्व के चिल्ला जोन में हाथी सफारी की शुरुआत हो गई। सफारी वाले हर हाथी का अनोखा है सफर है। हर एक की अपनी अनोखी, भावुक और प्रेरक कहानी, जो बताती है कि धैर्य, करुणा और देखभाल किसी भी जीवन को बदल सकती है। इस वर्ष चिल्ला पर्यटन जोन में इन्ही हाथियों के साथ हाथी सफारी को पुनः आरंभ किया गया है, जिसका संचालन राधा व रंगीली कर रही हैं।

राजाजी टाइगर रिजर्व के चिल्ला जोन में हाथी सफारी की शुरुआत ने न सिर्फ पर्यटन के एक नए अध्याय को खोला है, बल्कि यह उस मानवीय संवेदना और संरक्षण-भावना की भी मिसाल है, जिसने कई संघर्षग्रस्त, घायल या अनाथ हाथियों को नया जीवन दिया है। यह सिर्फ पर्यटन की एक विधा नहीं बल्कि सह अस्तित्व की उम्मीद जगाती सात हाथियों की मार्मिक कहानी भी है।

चिल्ला हाथी शिविर इस समय सात रेस्क्यू हाथियों का घर है। हर एक की अपनी अनोखी, भावुक और प्रेरक कहानी, जो बताती है कि धैर्य, करुणा और देखभाल किसी भी जीवन को बदल सकती है। इस वर्ष चिल्ला पर्यटन जोन में इन्ही हाथियों के साथ हाथी सफारी को पुनः आरंभ किया गया है, जिसका संचालन राधा व रंगीली कर रही हैं।

राधासबसे वरिष्ठ हथिनी राधा शिविर की मातृशक्ति मानी जाती है। दिल्ली जू से लाई गई यह 18 वर्षीय हथिनी आज 35 की होकर भी उसी सहजता से अपने झुंड के छोटे–बड़े सदस्यों की देखभाल करती है। रानी, जॉनी, सुल्तान और अब नन्हे कमल जैसे गज शिशुओं को उसने अपनी मां की ममता से पाला। जिस तरह वह जंगल की सैर पर सबसे आगे चलकर दल को दिशा देती है, वही नेतृत्व उसे सफारी की मुख्य हथिनियों में शामिल करता है।

रंगीली
रंगीली, जो राधा के साथ ही 2007 में दिल्ली जू से लाई गई थी, अपने अनुशासित और संयमी स्वभाव के कारण समूह की दूसरी स्तंभ मानी जाती है। राधा की तरह वह भी हाथी के बच्चों को संभालती है। उन्हें सावधानियां सिखाती है और किसी भी शरारती बाल हाथी को सख्ती से परंतु प्रेमपूर्वक समझाती है। इन दोनों की मित्रता और सामंजस्य इतना गहरा है कि सफारी संचालन में भी इन्हें साथ जोड़ा गया है। पर्यटक इन्हीं के ऊपर बैठकर चिल्ला के जंगलों की विविध वन्यजीव दुनिया को करीब से देख पाएंगे।

राजा
सबसे मार्मिक कहानी राजा की है। वह हाथी जिसने अपने जीवन की शुरुआत संघर्ष और अस्थिरता में देखी। वर्ष 2018 में राजा मानव–हाथी संघर्ष का हिस्सा बना और उसे पकड़कर चिल्ला लाया गया। कई महीनों के धैर्य, प्रशिक्षण और स्नेह ने उसके भीतर के तनाव को शांत किया। राजा आज उतना ही शांत, भरोसेमंद और समझदार है, मानसून में जब जंगल के रास्ते डूब जाते हैं, वही स्टाफ को अपने ऊपर बैठाकर गश्त कराता है और कई बार जंगली झुंडों को रास्ता दिखाता है।

रानी
रानी की कहानी भी उतनी ही हृदयस्पर्शी है। वर्ष 2014 में वह गंगा की तेज धारा में बहती मिली, सिर्फ तीन महीने की एक नन्ही जान। उसे बचाकर चिल्ला कैंप लाया गया, जहां राधा ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला। आज रानी एक चंचल, अत्यंत सौम्य और आदेशों को तेजी से सीखने वाली युवा हथिनी है, जो मानसून गश्ती में पूरा सहयोग करती है।

जॉनी और सुल्तान
जॉनी और सुल्तान, दो अनाथ गज शिशु। एक मोतीचूर से बचाया गया, दूसरा पहाड़ी से गिरकर मां खोने के बाद मिला, दोनों आज भाई की तरह रहते हैं। दोनों साथ खेलते, दौड़ते हैं, अभी वे गश्त की उम्र में नहीं, इसलिए कैंप के अन्य हाथियों के लिए जंगल से चारा लाने में मदद करते हैं।

कमल
सबसे छोटा सदस्य कमल साल 2022 में रवासन नदी से बचाया गया एक महीने का गज शिशु है। वह राधा के साये से एक पल भी दूर नहीं रहता। धीरे-धीरे कमल अब खेलना, आदेश पहचानना और जंगल की छोटी यात्राएं सीख रहा है।

क्या कहते हैं अधिकारी
चिल्ला हाथी शिविर आज इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यदि मनुष्य करुणा और धैर्य से कार्य करे, तो जंगल और उसके जीवों के बीच एक सुंदर, स्थायी और संतुलित रिश्ता स्थापित हो सकता है। हाथी सफारी इसी संदेश को आगे बढ़ाती है कि संरक्षण और विकास साथ-साथ चल सकते हैं, और प्रकृति का सम्मान ही भविष्य की मजबूत नींव है। – अजय लिंगवाल, एसीएफ राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क

मानसून के समय हाथी गश्त
राजाजी टाइगर रिजर्व में हर साल बरसात के दिनों में सड़कें जलमग्न हो जाती हैं और कई हिस्सों में सामान्य वाहनों से गश्त करना संभव नहीं होता है। ऐसे समय में यही हाथी स्टाफ को लेकर कठिन इलाकों में गश्त करते हैं, ताकि जंगल, वन्यजीव और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा बनी रहे। इनकी चपलता, समझ और वर्षों की पारंपरिक प्रशिक्षण प्रणाली के कारण जंगल की सुरक्षा व्यवस्था मानसून के दिनों में इन हाथियों पर ही निर्भर रहती है।

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