जानिए श्रीगंगादि तीथों से ‘जल लाने’ एवं भगवान् शिव का पूजन एवं शिवलिङ्ग को ‘जलांजली अभिषेक’ करने हेतु अगस्त माह के शुभ पुण्य मुहूर्त…….

हरिद्वार: अगर आप शुभ मुहूर्त में कांवड़ धारण करना चाहते हैं, तो आपके लिए 11, 14, 17, 18, 21 और 22 जुलाई है, अच्छे दिन है। आपको बता दें कि इन दिनों में 13 जुलाई से पंचक लग रहे हैं, लेकिन पंचक में शुभ कार्य वर्जित हैं, लेकिन कांवड़ लेने जाने के लिए पंचक का समय नहीं देखा जाता।

पंचक का प्रभाव 13 जुलाई को शाम 6:50 बजे से 18 जुलाई सुबह 3:38 बजे तक पंचक रहेगा। महादेव खुद कालों के काल है, इसलिए कांवड़ में राहुकाल और पंचक काल को नहीं माना जाता।

विशेष:👉 कुछ विद्वान मुख्य मुहूर्त्त यानि श्रावण शिवरात्रि, वाले दिन सारा दिन ही अभिषेक करते हैं, तथा कुछ प्रदोषकाल व निशीथकाल (22/23 जुलाई मध्यरात्रि में भी जलाभिषेक करते हैं।

विशेष:👉 भक्तगण इन मुहूत्तों में से कांवड़ जलाभिषेक हेतु जल को लाने एवं जलांजली अभिषेक हेतु कोई भी मुहूर्त्त ग्रहण कर सकते हैं।

जानिए काँवड यात्रा से जुड़ी कुछ और बाते-
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हिन्दू धर्म मे श्रावण माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन वेद तथा पुराणो में किया गया है।

सावन का यह माह शिवभक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता है। कांवड़ियों द्वारा जल लाने की यात्रा के आरंभ की कुछ तिथियाँ होती हैं। इन्ही तिथियों पर कांवड़ियों को यात्रा करना शुभ रहता है।

श्रावण के पावन मास में शिव भक्तों के द्वारा काँवर यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों शिव भक्त दूरस्थ तथा दुर्गम स्थानों जैसे गोमुख, श्री अमरनाथ, श्री हरिद्वार, नीलकण्ठ एवं गंगा आदि तीर्थो से पवित्र गंगाजल के कलश से भरी काँवड़ को अपने कंधों रखकर पैदल लाते हैं और उस गंगा जल से भगवान् शिव के प्रतिष्ठित मन्दिरों, ज्योतिर्लिङ्गों, विग्रहों, स्वरूपों तथा क्षेत्रीय मन्दिरों में शिवभक्त कांवड़ियों द्वारा श्रद्धारूपी श्रीगङ्गाजल का अभिषेक किया जाता है।

स्कन्दपुराणानुसार श्रावण मास में नियमपूर्वक नक्त व्रत करना चाहिए, और महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायी होता है।

कुर्यात् नक्त व्रतं योगिन् श्रावणे नियतो नरः।
रुद्राभिषेकं कुर्वीत् मासमात्रं दिने दिने ।।

कुछ लोगों का भ्रम है कि श्रावण भाद्रपद मास में नदियां रजस्वलारूप हो जाने से उनका जल पवित्र नहीं होता। परन्तु स्कन्दपुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि सिन्धु, सूती, चन्द्रभागा, गंगा, सरयू, नर्मदा, यमुना, प्लक्षजाला, सरस्वती- ये सभी नंदसंज्ञा वाली नदियां रजोदोष से युक्त नहीं होती है। ये सभी अवस्थाओं में निर्मल रहती हैं।

प्रतिवर्ष होने वाली इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को काँवरिया अथवा काँवड़िया कहा जाता है। भगवान् शिव की प्रसन्नता हेतु आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर सम्पूर्ण श्रावण मास, शिवभक्त कांवड़िये तीर्थ स्थलों तथा अन्य तीर्थ स्थलो से गंगा जल लाकर इसी प्रकार से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।

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