उत्तराखंड में देश के इतिहास में पहली बार इतने न्यायाधीशों ने किसी एक व्यक्ति के केस से खींचे हाथ, जानिए क्या है मामला……..
देहरादून: आईएफएस अधिकारी और मशहूर व्हिसलब्लोअर संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामलों में न्यायाधीशों के लगातार रिक्यूजल (स्वयं को सुनवाई से अलग करना) का सिलसिला जारी है। अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी ने भी उनकी अवमानना याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। यह देश के न्यायिक इतिहास में एक अभूतपूर्व रिकॉर्ड है, क्योंकि अब तक किसी एक व्यक्ति से जुड़े मामलों की सुनवाई से 15 न्यायाधीश अलग हो चुके हैं।
20 सितंबर को दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति मैठाणी ने केवल इतना लिखा कि मामला किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसका वे सदस्य न हों। आदेश में अलग होने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया, जिससे यह घटनाक्रम और भी असामान्य हो गया है।
अब तक किन-किन जजों ने हटने का फैसला लिया ?
सुप्रीम कोर्ट: न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (2013), न्यायमूर्ति यूयू ललित (2016)
उच्च न्यायालय: न्यायमूर्ति मनोज तिवारी (2024), न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल (2023), न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी (2025)
कैट (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण): अब तक 8 न्यायाधीश, जिनमें तत्कालीन अध्यक्ष एल. नरसिम्हन रेड्डी भी शामिल
निचली अदालतें: हिमाचल और उत्तराखंड की अदालतों में दो न्यायाधीशपहाड़ी संस्कृति उत्पाद
इस साल ही फरवरी में कैट की डिवीजन बेंच (हरविंदर ओबेरॉय और बी. आनंद) तथा अप्रैल में देहरादून की एसीजेएम नेहा कुशवाहा ने भी चतुर्वेदी के मामलों से खुद को अलग किया था।
क्यों चर्चा में रहते हैं संजीव चतुर्वेदी ?
संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड कैडर के 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने और सिस्टम में पारदर्शिता की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। हरियाणा कैडर में रहते हुए उन्होंने कई प्रभावशाली नेताओं और नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे, जिसके बाद उन्हें उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ा।पहाड़ी संस्कृति उत्पाद
न्यायपालिका के लिए सवाल
इतने बड़े पैमाने पर न्यायाधीशों का लगातार एक ही अधिकारी से जुड़े मामलों से अलग होना देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए चिंतन का विषय बन गया है। खास बात यह है कि ज्यादातर मामलों में न्यायाधीशों ने अलग होने का कोई कारण दर्ज नहीं किया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिलसिला न केवल पारदर्शिता और न्याय की उपलब्धता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संजीव चतुर्वेदी के मामलों की संवेदनशीलता कितनी अधिक है।