उत्तराखंड में बारिश के आंकड़ों से आपदा के कारणों की तलाश, ऊंचाई वाले क्षेत्र में जुटाया जा रहा डेटा……

देहरादून: बारिश के आंकड़ों से आपदा के कारणों की तलाश किए जाने का प्रयास किया जा रहा है।ऊंचाई वाले क्षेत्र में बारिश का डेटा जुटाया जा रहा है।

उत्तरकाशी जिले के धराली में आपदा के कारणों को पता लगाने में विशेषज्ञों की टीम जुटी है। इसमें बादल फटने के अलावा अन्य सभी पहलू को भी देखा जा रहा है। इसी के तहत विशेषज्ञों की बारिश के आंकड़ों पर भी निगाह टिकी हुई है। आपदा वाले दिन ऊंचाई के क्षेत्र में कितनी बारिश हुई है? यह जानकारी जुटाई जा रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार यदि ऊपरी क्षेत्रों में लगातार दो-तीन दिनों तक बारिश होती है तो भी यह मुसीबत बन सकती है। इसी कारण आपदा के दिन और उससे पूर्व चार दिनों की वर्षा के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। यह डेटा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के दो हजार मीटर से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों में स्थापित उपकरणों से प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, सीबीआरआई रुड़की, आईआईटी रुड़की, जीएसआई आदि के विशेषज्ञ आपदा से जुड़ी पड़ताल कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इसमें विशेषज्ञ बरसात के आंकड़ों को भी जुटा रहे हैं। इसमें ऊंचाई वाले क्षेत्र में कितनी बरसात हुई है? इस पर भी निगाह टिकी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार 2200 मीटर की ऊंचाई से अधिक क्षेत्र में बढ़ते हैं तो बारिश बढ़ती जाती है और फिर एक निश्चित ऊंचाई के बाद बारिश कम हो जाती है।

डोकरानी ग्लेशियर क्षेत्र में लगा है उपकरण।
विशेषज्ञ आपदा और उससे चार दिन पहले का भी बारिश का आंकड़ा जुटाने में लगे हैं। यह आंकड़ा डोकरानी ग्लेशियर इलाके में लगे उपकरण के माध्यम से लेने की कोशिश की जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि भागीरथी बेसिन जैसी नदी घाटियों वाले इलाके में बरसात और माैसम में बदलाव दिखाई देता है।

विशेषज्ञों के अनुसार समान ऊंचाई (लगभग 3800 मीटर) पर भी बारिश की मात्रा में बड़ा अंतर देखा जाता है। सूत्रों के अनुसार वाडिया संस्थान के उपकरण मानसून अवधि में गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में लगभग तीन सौ मिमी वर्षा और डोकरानी ग्लेशियर क्षेत्र में यह आंकड़ा बारह सौ मिमी तक रिकार्ड कर चुके हैं। दोनों में चार गुना का अंतर दिखता है।

विशेषज्ञों के अनुसार संबंधित क्षेत्र में ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी नीचे की तरफ बहता रहता है। ऐसे में अधिक बारिश या कई दिनों की लगातार बारिश से उत्पन्न पानी और उसमें ग्लेशियर पिघलने के कारण बना पानी नीचे की तरफ मलबा (ग्लेशियर के पीछे हटने पर बड़े- बड़े बोल्डर (मोरन) छोड़ते जाते हैं, यह मलबा खीरगंगा कैचमेंट एरिया में फैला हुआ है) लेकर आ सकता है। हालांकि सही कारणों का अधिकृत तौर पर पता विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आने के बाद ही चल सकेगा। आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने रिपोर्ट नहीं मिलने की बात कही है।

विशेषज्ञों के अनुसार संबंधित क्षेत्र में ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी नीचे की तरफ बहता रहता है। ऐसे में अधिक बारिश या कई दिनों की लगातार बारिश से उत्पन्न पानी और उसमें ग्लेशियर पिघलने के कारण बना पानी नीचे की तरफ मलबा (ग्लेशियर के पीछे हटने पर बड़े- बड़े बोल्डर (मोरन) छोड़ते जाते हैं, यह मलबा खीरगंगा कैचमेंट एरिया में फैला हुआ है) लेकर आ सकता है। हालांकि सही कारणों का अधिकृत तौर पर पता विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आने के बाद ही चल सकेगा। आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने रिपोर्ट नहीं मिलने की बात कही है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *