उत्तराखंड में SLP प्रकरण से बीजेपी असहज, प्रवक्ता बोलने क़ो तैयार नहीं, विपक्ष साध रहा निशाना तो निर्दलीय विधायक ने सरकार क़ो दिया धन्यवाद…..

देहरादून: उत्तराखंड में SLP मामले में जबरदस्त राजनिती गरमा गई है बीजेपी तो इस फैसले से इतनी असहज हो गई है की बीजेपी के बड़े नेता तो छोड़िये हर बात पर बोलने क़ो लालायित प्रवक्ता भी बोलने क़ो तैयार नहीं है।

वही उत्तराखंड में करप्शन वाले बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की टेंशन बढ़नी तय मानी जा रही है। उत्तराखंड सरकार की ओर से दायर एसएलपी को कोर्ट से वापस लेने के फैसले से भाजपा में अंदरूनी सियासत सुलग गई है। सरकार के इस फैसले से भाजपा के भीतर असहज स्थिति है। खासकर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत कैंप खासा नाराज है।

हालांकि त्रिवेंद्र कैंप से लेकर नाराज नेता खुलकर सामने नहीं आ रहे, लेकिन अंदरखाने इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं। मालूम हो कि काफी समय से भाजपा के भीतर शीर्ष नेताओं के बीच रिश्ते असहज नजर आ रहे हैं।

वही निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने जहाँ सरकार का आभार जताया है कहा मैं सरकार का धन्यवाद देता हूँ उन्हें लगता है मेरे खिलाफ राजद्रोह का केस नहीं चलना चाहिए क्यूंकि मामला फ़र्ज़ी था पूरा देश जानता है सरकार मेरे खिलाफ राजद्रोह नहीं चलाना चाहती इसमें किसी क़ो क्या परेशानी है उनके अनुसार इसमें त्रिवेंद्र क़ो झटका फलाने क़ो झटका जैसी बात कहा आ जाती है।

पिछले दिनों गैरसैंण, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी को लेकर जताई गई चिंताओं में भी पार्टी के भीतर पनप रही धड़ेबाजी के रूप में देखा जा रहा था। अब त्रिवेंद्र से जुड़े मामले में सरकार के सुप्रीम कोर्ट से कदम खींचने से इसे और बल मिल गया है। सूत्रों के अनुसार इस मामले से त्रिवेंद्र कैंप भाजपा हाईकमान को भी वाकिफ करा चुका है।कुछ समय पहले त्रिवेंद्र के सलाहकार रहे केएस पंवार की कंपनी के खिलाफ मनी लांड्रिंग से संबंधित कार्रवाई को भी अब इसी सियासी खींचतान से जोड़ा जाने लगा है। त्रिवेंद्र कैंप इन मामलों के पीछे एक विधायक हाथ बता रहा है। उसका कहना है कि सरकार ने यह फैसला दबाव में लिया है। सरकार को ब्लैकमेल और गुमराह किया जा रहा है।

त्रिवेंद्र समेत भाजपा के बड़े नेता खामोश एसएलपी मामले को लेकर भाजपा के शीर्ष नेताओं खामोशी ओढ़ ली है। मामला हाईप्रोफाइल होने की वजह से कोई भी टिप्प्णी करने से हिचक रहा है। । दूसरी तरफ, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इस मामले में कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। संपर्क करने पर उन्होंने कहा- नो कमेंट। बकौल त्रिवेंद्र, मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं। मुझे इस विषय में कुछ नहीं कहना है।

अब त्रिवेंद्र को खुद लड़नी होगी अपनी लड़ाई पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को झारखंड गो सेवा आयोग से जुड़े मामले में अपनी लड़ाई अब खुद ही लड़नी होगी। यदि सुप्रीम कोर्ट सरकार को एसएलपी को वापस लेने की अनुमति दे देता है तो तो इस मामले में केवल दो ही एसएलपी बाकी रह जाएंगी। अब तक त्रिवेंद्र कैंप सरकार की एसएलपी को कानूनी कवच मानते हुए खुद को सेफ जोन में मानकर चल रहा था।

वर्ष 2020 में हाईकोर्ट में एक याचिका में आरोप लगाया गया था कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत वर्ष 2016 में झारखंड के भाजपा प्रदेश प्रभारी थे। दरअसल, दो पत्रकारों ने अपने खिलाफ दायर विभिन्न एफआईआर को निरस्त कराने के लिए केस दायर किए थे। यह विषय उन्हीं रिट में आया था। आरोप था कि उस वक्त एक व्यक्ति को गो सेवा आयोग का अध्यक्ष बनवाने में सहयोग का आश्वासन दिया था। दावा किया गया कि इसके एवज में उस व्यक्ति ने त्रिवेंद्र के कुछ रिश्तेदारों के खातों में पैसा जमा कराया था।मामले की सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले सीबीआई जांच कराने के लिए कहा था।

साथ ही एफआईआर को निरस्त करने के आदेश भी दे दिए थे। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ त्रिवेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एसएसलपी दायर की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को स्टे कर दिया था। इस मामले में सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी।

वही कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के अनुसार इस मामले से पता चलता है बीजेपी में अंदरखाने कितनी फूट है।

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