उत्तराखंड UCC में जनजातियों को क्यों अलग रखा गया? जानिए क्या है पूरा मामला…..
देहरादून: यूसीसी में शामिल करने को संविधान में संशोधन जरूरी है। इस कारण जनजातियों और आदिवासियों को यूसीसी के बाहर रखा गया है। यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित समिति क्षेत्रों का दौरा किया।
उत्तराखंड में जनजातियों को यूसीसी से बाहर रखने की बड़ी वजह उनकी अलग सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान है। भाषा, रीति-रिवाज, पहनावा, खान-पान, संस्कृति उन्हें विशिष्ट बनाती है। विधानसभा में पेश यूसीसी विधेयक में जनजातियों-आदिवासियों को बाहर रखने के प्रश्न पर कहा गया कि संविधान में जनजातियों को विशेष संरक्षण प्राप्त है।
इन्हें यूसीसी में शामिल करने को संविधान में संशोधन जरूरी है। इस कारण जनजातियों और आदिवासियों को यूसीसी के बाहर रखा गया है। यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित समिति ने विभिन्न जनजाति क्षेत्रों का दौरा कर जनसंवाद किया था। इस दौरान जो सुझाव मिले, उनमें स्पष्ट था कि जनजातीय समुदाय भी अपने यहां व्याप्त कुरीतियां समाप्त करने का पक्षधर है, पर जनजातीय समाज के लोगों की यह स्पष्ट धारणा रही कि समाज के विभिन्न वर्गों में आपसी विचार-विमर्श तथा सहमति के लिए कुछ अधिक समय की जरूरत है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25), सहपठित अनुच्छेद 342 के अंतर्गत तथा अनुसूची 6 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है।
समिति द्वारा जनसंवाद के दौरान उक्त जनजातीय क्षेत्रों का भ्रमण भी किया गया तथा बड़ी संख्या में जनजातीय समूह के लोगों से वार्ता भी की गई। वार्ता के दौरान जो सुझाव प्राप्त हुए उसके संबंध में यह स्पष्ट था कि जनजातीय समूह भी अपने यहां व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का पक्षधर है, परन्तु इस हेतु जनजातीय समाज के लोगों की यह धारणा थी कि समाज के विभिन्न वर्गों में आपसी विचार विमर्श तथा आपसी सहमति बनाने के लिए कुछ अधिक समय की आवश्यकता है। इस कारण से प्रस्तुत किए गए ड्राफ्ट में जनजातीयों को अलग रखा गया है।
यदि जनजातियों की तुलना प्रदेश में निवास कर रहे विभिन्न वर्गों से की जाए तो अन्य वर्गों की तुलना में जनजातीय समुदाय में महिलाओं की स्थिति कहीं अधिक अच्छी है।
पूर्व कुलपति डॉ. यूएस रावत ने कहा कि चमोली की भोटिया जनजाति के अपने रीति रिवाज, सांस्कृतिक मान्यताएं और धार्मिक विधि-विधान हैं। बाकी समाज से इनका अंतर भाषाई, पहनावा, धार्मिक विधि-विधान व लोक संस्कृति का लेकर है। अगर ये जनजाति यूसीसी के दायरे में आती भी तो खास अंतर नहीं आता, क्योंकि इन लोगों के पास शेष सामाजिक अधिकार सामान्य समाज की तरह हैं।
जौनसारी समाज को बाहर रखना सही कदम।
लोक पंचायत जौनसार बावर के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्रीचंद शर्मा के मुताबिक अगर अभी की परिस्थिति में जनजातियों को यूसीसी के दायरे में लाया जाता तो कहीं न कहीं क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं पर यह अतिक्रमण होता। जनजाति क्षेत्र के अपने हक हकूक हैं और इन पर कोई असर न पड़े, इसीलिए यूसीसी के दायरे से बाहर रखना जरूरी था। जो कुछ कुरीतियां हैं, उन्हें दूर करने के प्रयास हो रहे हैं। समाज जब इसके लिए तैयार हो जाएगा तो फिर इससे कानून के जरिए अनुपालन भी सुनिश्चित किया जा सकता है।