उत्तराखंड में नमामि गंगे के कार्यों में भ्रष्टाचार पर विजिलेंस की जांच तेज, पूर्व एमडी भजन सिंह संकट में…..
देहरादून: उत्तराखंड पेयजल निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक (एमडी) भजन सिंह मुश्किल में हैं। नमामि गंगे परियोजना के तहत करोड़ों की लागत से बनाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में भारी अनियमितताएं पाई गईं, ये सभी एसटीपी पेयजल निगम के पूर्व एमडी भजन सिंह के कार्यकाल में बनाए गए थे। जिस पर विजिलेंस की जांच तेज हो गई है। विजिलेंस की टीमों ने देहरादून व हरिद्वार में छापेमारी की। इस दौरान एसटीपी से जुड़े कई दस्तावेज कब्जे में लिए। साथ ही भजन सिंह से भी पूछताछ की सूचना है।
गढ़वाल परिक्षेत्र में नमामि गंगे परियोजना के तहत सात जगह एसटीपी बनाए गए। इन एसटीपी का निर्माण वर्ष 2009 से 2020 के बीच किया गया। 400 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए एसटीपी में भारी वित्तीय अनियमिताएं सामने आईं।
आय से अधिक संपत्ति की भी चल रही है जांच।
पूर्व एमडी के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति की जांच भी विजिलेंस कर रही है। आरोप है कि पूर्व एमडी ने पद पर रहते हुए चहेतों को फायदा पहुंचाया। भजन सिंह वर्ष 2009 में पेयजल के प्रभारी एमडी बने। उनके कार्यकाल के दौरान नमामि गंगे के तहत करोड़ों रुपये के निर्माण कार्य हुए। उनके पास पेयजल के साथ- साथ सीवरेज एवं नमामि गंगे जैसे महत्वपूर्ण दायित्व भी थे। भजन सिंह एमडी पद पर करीब 10 वर्षों तक तैनात रहे।
सेवा के दौरान पूर्व एमडी भजन सिंह का विवादों से रहा गहरा नाता।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के मूल निवासी भजन सिंह का उत्तराखंड पेयजल निगम में करियर विवादों से घिरा रहा। वर्ष 2002 में अस्तित्व में आए पेयजल निगम में भजन सिंह का करियर बतौर अधीक्षण अभियंता शुरू हुआ। पदोन्नति में आरक्षण के तहत भजन सिंह को वर्ष 2005 में ही मुख्य अभियंता बना दिया गया। इसके बाद वर्ष 2009 में प्रभारी व्यवस्था के तहत भजन सिंह प्रबंध निदेशक के पद पर आसीन हो गए। इसके बाद पेयजल निगम में उनकी हुकूमत चलने लगी।
हालांकि, इसके साथ ही उनका विरोध भी होने लगा। निगम में उनसे वरिष्ठ अभियंताओं ने एमडी पद पर उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए शासन को प्रत्यावेदन दिया और साथ ही न्यायालय में वाद दाखिल कर दिया। विरोध के बावजूद भजन सिंह एमडी पद पर डटे रहे। नियमानुसार प्रबंध निदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए कम से कम 10 वर्ष तक मुख्य अभियंता के रूप में सेवा आवश्यक है।
साथ ही प्रभारी व्यवस्था के तहत प्रबंध निदेशक के पद पर अधिकतम तीन वर्ष अथवा अधिवर्षता आयु पूर्ण होने, जो भी पहले हो तक ही नियुक्ति दी जा सकती है। वर्ष 2012 में प्रबंध निदेशक के पद पर नियमित नियुक्ति के लिए शासन में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में वरिष्ठ अभियंता रविंद्र कुमार का चयन किया गया। जिसे भजन सिंह ने चुनौती दी कि रविंद्र कुमार उनसे कनिष्ठ हैं और उनके विरुद्ध विभागीय जांच गतिमान है। जिसे हाईकोर्ट ने नकार दिया था और भजन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर विभागीय जांच के नाम पर रविंद्र कुमार को हटाने का आदेश प्राप्त कर लिया। जिसके बाद शासन ने फिर से भजन सिंह को प्रबंध निदेशक बना दिया। आगे भी नियुक्ति को लेकर विवाद जारी रहा, लेकिन भजन सिंह वर्ष 2019 तक पद पर डटे रहे। इस दौरान उन पर नमामि गंगे समेत अन्य करोड़ों की परियोजनाओं में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे।
आरोपों की पुष्टि के बाद विजिलेंस को सौंपी जांच।
पेयजल निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक भजन सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर वर्ष 2018 में तत्कालीन पेयजल मंत्री स्वर्गीय प्रकाश पंत ने भी पैरवी की थी। इसके बाद वर्ष 2020 में तत्कालीन पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल के निर्देश पर शासन की कमेटी गठित कर जांच की गई। जिसमें भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि होने पर विजिलेंस जांच बैठा दी गई। भजन सिंह पर परिवार के सदस्यों के नाम से कंपनी बनाकर पेयजल निगम के ठेके लेने और भुगतान में अनियमितताएं करने के आरोप थे।