उत्तराखंड परिवहन निगम में ड्यूटी थी किसी और चालक की, भेज दिया दूसरा; आगे जाकर हादसे की शिकार हो गई बस…….

देहरादून: उत्तराखंड परिवहन निगम में चालक-परिचालकों की लापरवाही से एक और बस दुर्घटना हो गई। मसूरी से दिल्ली जा रही बस के चालक ने लापरवाही से बस को तेज गति से चलाया जिससे बस पलट गई और एक दर्जन से अधिक यात्री घायल हो गए। जांच में पता चला कि बस पर निर्धारित चालक की ड्यूटी नहीं थी बल्कि उसके बदले दूसरे चालक को भेजा गया था।

उत्तराखंड परिवहन निगम में चालक-परिचालकों व अधिकारियों के बीच बस पर डयूटी लगाने को लेकर साठगांठ का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्थिति यह है कि बस पर जिस चालक की डयूटी है, उसके बदले साठगांठ कर दूसरे चालक को भेजा जा रहा।

ऐसे ही एक प्रकरण में मसूरी से दिल्ली गए चालक की लापरवाही के कारण बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बस भी नई बीएस-6 है। दुर्घटना में एक दर्जन से अधिक यात्री घायल हो गए। मंडल प्रबंधक पूजा केहरा ने घटना की जांच बैठा दी है।

परिवहन निगम की एक बस पर दो चालक व दो परिचालकों को ड्यूटी आवंटित होती है। रोटेशन के आधार पर इन चालक-परिचालकों को निर्धारित बस पर भेजा जाता है।

दो हफ्ते पहले ही निगम के बेड़े में शामिल हुई नई 130 बीएस-6 बसों में से दो बसें पर्वतीय डिपो को आवंटित हुई हैं। इनमें बस (यूके07-पीए-5993) पर चालक सत्येंद्र कुमार व अर्जुन सिंह की ड्यूटी आवंटित है। यह बस देहरादून-मसूरी व मसूरी-देहरादून-दिल्ली चलती है।

आरोप है कि डिपो अधिकारी, केंद्र प्रभारी व समयपाल की ओर से चालक सत्येंद्र के बदले इस बस पर लगातार राजेश कुमार को भेजा जा रहा। बताया जा रहा तीन दिन पहले भी चालक राजेश की लापरवाही के कारण बस का मोबिल आयल फिल्टर रुड़की में फट गया था और बस को वापस देहरादून लाना पड़ा था।

शुक्रवार को इस बस पर सत्येंद्र कुमार की ड्यूटी थी, लेकिन फिर राजेश कुमार को मसूरी-देहरादून-दिल्ली भेज दिया गया। बस शनिवार तड़के दिल्ली कश्मीरी गेट आइएसबीटी से पांच किमी पहले तीव्र मोड पर पलट गई। जिसमें यात्री भी घायल हो गए। यात्रियों ने पुलिस को बताया कि चालक लापरवाही व तेज गति से बस चला रहा था। यात्रियों को दूसरी बस से आइएसबीटी भेजा गया।

जून में भी हुआ था राजफाश
डिपो अधिकारियों की मदद से निर्धारित चालक या परिचालक के बजाय बसों पर दूसरे चालक-परिचालक भेजने का राजफाश गत जून में भी हो चुका है। लगातार मिल रही शिकायत पर जब निगम मुख्यालय ने जांच कराई थी तो 15 दिन में 48 बसें ऐसी पकड़ी गई थी, जिन्हें दूसरे चालक चला रहे थे। इनमें कुछ चालक निगम में तैनात भी नहीं थे। इसके बावजूद डिपो अधिकारी, केंद्र प्रभारी और समयपाल की मिलीभगत से मनमर्जी से बसों पर चालक-परिचालक भेजे जा रहे हैं।

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