उत्तराखंड के हरिद्वार लोकसभा सीट, स्थानीय VS बाहरी की लड़ाई तेज, स्थानीय प्रत्याशी की मांग, हरदा भी कूदे लड़ाई……
हरिद्वार: लोकसभा चुनाव जैसे जैसे पास आ रहे है वैसे वैसे कांग्रेस मे भी राजनैतिक गतिविधि बढ़ती जा रही है वही हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर तो अब स्थानीय वर्सेज बाहरी का भी नारा चलने लगा है पिछले दिनों रुड़की मे हुई हरिद्वार जिले के स्थानीय कांग्रेस के नेताओं की बैठक मे इस बात को साफ तौर पर कहा गया कि हरिद्वार मे इस बार स्थानीय को मौका दिया जाना चाहिए ना की किसी जिले से बाहर के किसी कांग्रेस के नेता को यहां पर थोपा जाए
कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष संजय पालीवाल ने इस बैठक की पुष्टि की है उनके अनुसार हरिद्वार इस बार स्थानीय व्यक्ति को प्रत्याशी चाहता है वही हरीश रावत भी सोशल मीडिया मे स्थानीय और बाहरी पर बात कर चुके है
हरिद्वार मे स्थानीय और बाहरी की लड़ाई मे अब हरीश रावत भी कूद पड़े है हरीश रावत ने फेसबुक पर जहाँ इस मामले मे लम्बी चौड़ी पोस्ट लिखी है वही स्थानीय प्रत्याशी की मांग करने वालो पर हरीश रावत ने साफ कह दिया है कि हमारे प्यार मे कुछ खलनायक भी तो होंगे तभी तो फ़िल्म पूरी होंगी और पाहड़ी तो मै हूँ ही मुझे तो एक किलोमीटर दूर से ही लोग पाहड़ी कह देंगे।
और मैंने कभी छुपाया नहीं मै तो आज भी मोहनरी वासी हू ऐसे तो देहरादून वाले भी मुझे बाहरी कह देंगे क्यूंकि यहां मेरा कोई घर नहीं है जिसदिन यहां घर हो जाएगा मै देहरादून वासी हो जाऊंगा वही हरीश रावत ने साफ कहा की हरिद्वार मे जहाँ कई प्यार करने वाले मिलते है तो कई चिकोटी काटने वाले भी मिल जायेंगे उनके प्यार से मुझे हरिद्वार के प्यार की खुशबु आती है हरीश रावत के अनुसार मैंने हरिद्वार की बंजर ज़मीन को अपने पसीने और समझ से सींचने का काम किया और अब हरिद्वार कांग्रेस के लिए इतनी मजबूत ज़मीन हो गई है की कई लोगो के बिना हरिद्वार गए भी मुँह मे पानी आ रहा है उनके अनुसार इस तरह की बाते कांग्रेस के नेताओं के मुँह से आ रही है बस इसी बात का दुख है।
पढ़िए फेसबुक पर हरीश रावत क्या बोले
——–हरिद्वार और मैं—–
हरिद्वार से देश और दुनिया का आध्यात्मिक नाता है और मेरा नाता आत्मीयता का है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं गंगा भक्त नहीं हूं। मैं गंगा भक्त के साथ-साथ गंगा भक्तों का भक्त भी हूं। मैं भगवान दक्षेश्वर का भक्त हूं, इसलिए सभी साधु-संतों, महात्माओं में मुझे देवाधिदेव महादेव के दर्शन होते हैं। हरिद्वार का हर पूजा स्थल ऐसा है जहां मैंने कई-कई बार माथा टेका है। मैं साबिर साहब की दरगाह पर भी श्रद्धा करने जाता रहता हूं। सर्व धर्म संभावी गंगा जी में मैंने कई बार डुबकी भी लगाई है। जितनी आत्मियता मुझे गंगा जी में डुबकी लगाकर प्राप्त हुई, उतना ही अपनत्व मैंने हरिद्वार के लोगों की सेवा से भी प्राप्त किया है। हरिद्वार में मेरी रुचि का प्रारम्भिक कारण राजनीति थी। जब उत्तराखंड राज्य का गठन लगभग निश्चित हो गया। कलकत्ता में कांग्रेस छोटे राज्यों के पक्ष में आ गई, संसद में सर्वानुमति बनने के आसार पक्के हो गए तो मुझे लगा कि उत्तराखंड के भविष्य के लिए और एक छोटा मगर असरदार प्रदेश बनने के लिए, आवश्यक है कि हरिद्वार, उत्तराखंड का हिस्सा बने और हम कुछ लोगों ने मिलकर के एक ज्ञापन दिल्ली में गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी को सौंपा।
लाल कृष्ण आडवाणी जी के हाव-भाव से हमको यह लगा कि हरिद्वार, उत्तराखंड का हिस्सा बने यह उनकी भी ईच्छा है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण कॉमेंट किया कि उत्तराखंड देवभूमि है और हरिद्वार गंगा की भूमि है, देव और गंगा अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? लेकिन हरिद्वार में सामान्य तौर पर इस विषय में राय बटी हुई थी। यहां तक की कांग्रेस और भाजपा में भी राय बटी हुई थी। हां, सपा और बसपा हरिद्वार को उत्तराखंड में सम्मिलित किए जाने के विरोध में थे। कांग्रेस में तो एक बड़ा हिस्सा ही नहीं बल्कि लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हरिद्वार का उत्तर प्रदेश में रहने का पक्षधर था और भाजपा में भी यही स्थिति थी। मैंने हरिद्वार में बहुत सारे नेतागणों, विशेष तौर पर कांग्रेस के नेतागणों से संपर्क किया और कुछ रुड़की व हरिद्वार में पर्वतीय मूल के लोगों से संपर्क किया। खैर उनका स्वाभाविक समर्थन “हरिद्वार मिलाओ अभियान” के साथ था। हमें एक बहुत अच्छे व्यक्ति का समर्थन मिल गया, वह थे वहां के सांसद श्री हरपाल साथी जी और श्री साथी खुलकर हरिद्वार मिलाओ अभियान का नेतृत्व करने के लिए तैयार हो गए। मैंने उनके साथ कांग्रेस के श्री पुरुषोत्तम शर्मा जी, श्री महेश भारद्वाज, श्री विजेंद्र चौहान, श्री पंकज सहगल, लोकार्थ साप्ताहिक समाचार पत्र के मुख्य संपादक श्री सोमनाथ जी, श्री दिवाकर भट्ट जी, स्व. जे.पी. पांडे, श्री सतीश जोशी और श्री महेश गौड़ साहब जो हमारे धर्मशाला परिषद के अध्यक्ष थे, उनको भी जोड़ा और हमने धीरे-धीरे बहुत सारे अपने कांग्रेस के सहयोगी-साथियों को इस अभियान के साथ जोड़ा। उपरोक्त नामों में से कई नाम पहले से ही इस दिशा में क्रियाशील थे। हमने मां माया देवी मंदिर हरिद्वार के मैदान से जिलाधिकारी कैंप कार्यालय मायापुरी तक एक पदयात्रा जो जुलूस के रूप में थी, वह निकाली। खैर तीव्र प्रतिक्रिया लोगों की हुई, कुछ लोगों ने सराहा तो कुछ लोगों ने इन प्रयासों की आलोचना की। हमारे कई सहयोगी-साथी जो कांग्रेस के नेतागण थे वह खुलकर के हमारे विरोध में भी आए। लेकिन संदेश चला गया कि हम हरिद्वार को उत्तराखंड में मिलाने के पक्षधर हैं।
सौभाग्य से जब संसद में बिल प्रस्तुत हुआ तो उस बिल में उत्तराखंड हरिद्वार सहित बना और बिल सर्वानुमति से पारित हुआ। इसके बाद हरिद्वार में मेरा आना-जाना और ज्यादा बढ़ गया, राज्य बनने के कुछ समय बाद सौभाग्य से मुझे उत्तराखंड कांग्रेस का अध्यक्ष पद सौंप दिया गया। पीसीसी का अध्यक्ष बनने के बाद जब पहली बार नारसन में मेरा स्वागत हुआ और 13 लोग हरिद्वार जनपद के मेरे स्वागतार्थ वहां खड़े थे, रास्ते में मंगलौर में जरूर 40-50 लोगों ने स्वागत किया, हरिद्वार शहर में भी सब मामला फीका सा था, तो मुझे पहले दिन ही इस बात का गम्भीर आभास हो गया कि हरिद्वार में संगठन को खड़ा करना मेरे लिए बड़ी चुनौती है और हरिद्वार सबसे ज्यादा विधायक देने वाला जिला है, वहां यदि पार्टी शून्य स्थिति में हो तो सरकार बनाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सूचनात्मक स्थिति की गम्भीरता का ज्ञान इस तथ्य से भी हो जाता है कि जब 2002 में उम्मीदवार खड़ा करने की बात आई तो मुझे 3 सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार नहीं मिले, भगवानपुर सीट पर जब मैंने वहां के पूर्व ब्लाक प्रमुख से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की बात कही तो उन्होंने बिल्कुल साफ कह दिया कि मेरी पहली प्रायरिटी समाजवादी पार्टी है और यदि समाजवादी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो तब मैं कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ूंगा, तो मैंने उत्तर प्रदेश के मंत्री रह चुके सहारनपुर के एक व्यक्ति को आमंत्रित किया और उन्हें चुनाव लड़ाया। सहारनपुर के एक दूसरे व्यक्ति को एक दूसरी सीट से चुनाव लड़ाया। मैं यह आभास नहीं देना चाहता था कि कांग्रेस के पास हरिद्वार में उम्मीदवार नहीं हैं, क्योंकि इस तथ्य का असर अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता और जो पार्टी, सरकार बनाने की दावे के साथ चुनाव मैदान में हो तो उसके लिए ऐसी स्थिति अच्छी नहीं थी।
हरिद्वार के कई गांवों में जब मैं भ्रमण के दौरान जाता था तो लोग बाहर नहीं आते थे, लोगों को जुटाना मुश्किल हो जाता था, कई जगह तो लोगों के आंगन से खाट निकाल करके मैं पेड़ के नीचे बैठ जाता था फिर किसी तरीके से किसी से पानी मंगा कर, किसी से रोटी मंगा कर के यह संदेश देने का प्रयास करता था कि मैं भी तुम्हारे बीच का हूं, धीरे-धीरे कारवां जुटता गया और 2007 में हम कुछ बेहतर स्थिति में आए और 2009 में पार्टी ने मुझे हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ने का आदेश दिया, बल्कि जब पार्टी ने मुझे हरिद्वार से उम्मीदवार घोषित किया तो मेरे लिए भी यह एक आश्चर्य भरा उपहार था। राजनीतिक विश्लेषक इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे थे कि हरीश रावत की राजनीति यहीं दफन हो जाएगी। विधाता व हरिद्वार के लोगों को कुछ और ही मंजूर था। अल्मोड़ा की सीट आरक्षित हो गई थी और मैं अपने लिए विधानसभा की सीट खोज रहा था क्योंकि अपने घर की सीट से मैं पहले यूकेडी से कांग्रेस में आए, यूकेडी के पूर्व महामंत्री संगठन श्री प्रताप सिंह बिष्ट को चुनाव लड़ा चुका था और वह चुनाव जीते थे, उसके बाद 2007 में वहां से श्री करण महरा चुनाव जीत चुके थे और 2009 में जब मुझे उम्मीदवार घोषित किया गया तो अधिकांश लोगों का मानना यह था कि कांग्रेस हरिद्वार में हार जाएगी क्योंकि पिछले 30 वर्षों से कांग्रेस लगातार पराजित हो रही थी। हरिद्वार ने साथ दिया, भाग्य ने भी साथ दिया और मैं चुनाव जीत गया। 2009 से 2014 तक मैंने बहुत कृतज्ञ भाव से हरिद्वार के साथ अपने को जोड़ा और लगभग हर गांव व परिवार के साथ मेरा एक अपनत्व का दुःख-सुख का, विकास का, सेवा का स्थान बन गया, हरिद्वार के लोगों के प्यार ने धीरे-धीरे मेरे ऊपर इतना अपनापन पैदा कर दिया कि हरिद्वार मुझे अपना घर लगने लग गया और हरिद्वार वालों को मैं अपना ही लगने लग गया। चुनाव के वक्त हरिद्वार में कुछ लोगों ने मुझे पहाड़ी कहा, कुछ लोगों ने बाहरी कहा और चुनाव के दौरान हर बड़ी मीटिंग में मैं कहता था कि,
मैं दूर अल्मोड़ा के मोहनरी गांव का रहने वाला हूं और मुझे लोग पहाड़ी कह रहे हैं और 1 किलोमीटर दूर से ही मेरी शक्ल-सूरत देखकर कोई भी कह देगा कि हरीश रावत पहाड़ी है और इसके बावजूद यदि आप समझते हैं कि हरीश रावत हमारे लिए एक अच्छा जन सेवक हो सकता है तो मेरा आपसे यह वादा है कि मैं आपको एक सजीव और सचेष्ट सेवाभावी प्रतिनिधित्व दूंगा और मैं वह निश्चय पूर्वक कह सकता हूं कि मैंने दिया, तब से मेरा और हरिद्वार का रिश्ता प्रगाढ़ तर होता गया।
वर्ष 2014 में मेरी पत्नी हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ी, देश में परिवर्तन की हवा थी, कांग्रेस के विरुद्ध तो उस समय देश में नाराजगी थी, राज्य में भी नाराजगी थी, क्योंकि हिमालय सुनामी जिसको केदारनाथ आपदा भी कहा गया उसमें राज्य में यत्र-तत्र सर्वत्र बड़ी तबाही मची थी, हरिद्वार में भी तबाही मची थी। राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, हम लोगों तक ठीक से राहत व मदद नहीं पहुंच पाए थे। लोकसभा का चुनाव हुआ था मैं लगभग उसी समय मुख्यमंत्री बनकर आया था। मुझे भी कुछ खास करने का मौका नहीं मिल पाया था, मुझे मुख्यमंत्री बने हुए एकाध ही महीना हुआ था, केंद्र सरकार की एंटी इनकंबेंसी और राज्य सरकार के प्रति गुस्से के कारण हम लोकसभा की पांचों सीटें हार गए। हरिद्वार में तुलनात्मक रूप से हार का मार्जन कम रहा, शायद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सबसे कम वोटों से पराजय हरिद्वार और अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में हुई थी। मुख्यमंत्री काल में मुझे, हरिद्वार का जो उपकार मेरे ऊपर था इसका थोड़ा प्रतिदान देने का अवसर मिला और मैंने डठकर के विकास व सेवा के काम हरिद्वार में करवाये और इस दौर में हरिद्वार के लोगों से मेरा जुड़ाव और प्रगाढ़ व गहरा हुआ। मुख्यमंत्री आवास वर्चुअली हरिद्वार वालों का आवास बनकर रह गया था, प्रतिदिन मुख्यमंत्री आवास में आने वाले लोगों में 50 से 60 प्रतिशत लोग हरिद्वार जनपद के होते थे। साधारण से साधारण व्यक्ति भी अधिकार पूर्वक मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश करता था और उनको यथासंभव मदद व सेवा भी उपलब्ध होती थी।
2019 के चुनाव के वक्त मेरी स्वाभाविक पसंद हरिद्वार लोकसभा सीट थी। हमारे कुछ नाराज दोस्तों ने फिर पहाड़ी और बाहरी का राग अलापना शुरू किया, समाचार पत्रों में भी वह खबर बढ़-चढ़कर के छपी। मेरा मन बहुत कुंठित हुआ और मैंने निश्चय किया कि मैं लोकसभा का चुनाव नहीं लडूंगा। लेकिन पार्टी के अपने आंतरिक सर्वेक्षण थे, पार्टी लीडरशिप ने मुझे बुलाया और प्रदेश लीडरशिप के साथ मुझे बैठाया तो मुझसे कहा कि आपको चुनाव लड़ना है। मैंने कहा, हरिद्वार में विसात ऐसी बना दी गई है कि मैं चुनाव हारूं और अब मुझसे कहा जा रहा है कि चुनाव लड़ो! सारे संगठन के पदों पर वह लोग बैठे हैं जिन लोगों से मेरा विरोध करवाया जा रहा है, आम मतदाता को उकसाने के लिए मुझे पहाड़ी व बाहरी बताया जा रहा है।
हरिद्वार से चुनाव लड़कर मैं हरिद्वार के लोगों को अब परीक्षा में नहीं डालना चाहता हूं, उन्होंने मुझे एक बार विजई बना दिया और उसके बाद उन्होंने मुझे लगातार अपना प्यार दिया है, मैं उनके प्यार की और परीक्षा लेने की स्थिति में नहीं हूं। मैंने लीडरशिप के सामने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मैं हरिद्वार के लोगों का कृतज्ञ हूं, यदि अब मैं चुनाव में हारा तो उनका वह उपकार अर्थहीन हो जाएगा और अनन्तोगत्वा पार्टी ने कहा कि हमारी जानकारी यह है कि यदि आपको चुनाव नहीं लड़ायेंगे तो इसका पांचों सीटों पर विपरीत असर पड़ेगा, आपको चुनाव लड़ना ही पड़ेगा और लास्ट मिनट में मुझे नैनीताल संसदीय सीट से चुनाव लड़ने के लिए जाना पड़ा। मगर हरिद्वार में बड़ी संख्या में लोगों का मानना यह था कि मेरा यह निर्णय गलत था और हरिद्वार के लोग अपने आपको आहत भी महसूस कर रहे थे और लोगों के मन में उन लोगों के प्रति गुस्सा था, जिन लोगों ने इस तरीके की नकारात्मक बातें उठाई थी और लोग कहते थे कि यह वह लोग हैं जिनमें से आधे से ज्यादा लोगों ने कभी कांग्रेस को भी वोट नहीं दिया है। लोकसभा के रिजल्ट आने के बाद जब कांग्रेस देश में केवल 52 सीटें जीत पाई और मान्यता प्राप्त विपक्ष का दर्जा एक सदस्य कम होने से प्राप्त नहीं कर पाई तो मुझे बहुत दुःख हुआ, तो मैंने अपने मन में कई बार सोचा कि यह सब मेरी गलती से हुआ है। यदि मैं हरिद्वार से लड़ता तो कांग्रेस को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
उपरोक्त के बावजूद भी मैं निरंतर हरिद्वार आता-जाता रहा, लोगों के सुख-दुख में शामिल होता रहा, वहां की समस्याओं से मैं निरंतर जुड़ा रहा। 2022 की जब चुनौती सामने आई तो हरिद्वार के लोगों ने जहां हरिद्वार ग्रामीण से मेरी बेटी को चुनाव जिताया, वहां पर इस भावना के अंतर्गत भी वोट दिया कि हरीश रावत मुख्यमंत्री होंगे और कांग्रेस के उम्मीदवारों को विजयी बनाया, यदि तीन चार स्थानों पर हमने उम्मीदवार के चैन में गलती नहीं की होती तो हरिद्वार में कांग्रेस 8 या 9 सीटों पर विजई होती जो अपने आप में बड़ा रिकॉर्ड होता। कांग्रेस चुनाव में पराजित हो गई, सरकार नहीं बन पायी, हरिद्वार को निराशा हुई। विधानसभा चुनाव के बाद हरिद्वार में पंचायत के चुनाव हुये क्योंकि वहां राज्य के 12 जिलों से अलग हटकर के पंचायत के चुनाव होते हैं, उन चुनावों में पार्टी ने मुझसे उम्मीदवारों के चयन में परामर्श करना उचित नहीं समझा और न पार्टी ने मुझसे चुनाव प्रचार के लिए कहा। जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के चुनावों में पार्टी बुरी तरीके से हार गई, जो उम्मीदवार जीते भी वह भाजपा में सम्मिलित होने लग गए और लगभग 750-800 कार्यकर्ताओं पर अपराधिक मुकदमे दर्ज हुए, धारा 307, 392, 332, 333 आईपीसी की धारा लगाकर लोगों को संलिप्त किया गया तो मेरी चिंता बढ़ी और मेरे अंदर का हरद्वारीलाल अपने आपको रोक नहीं पाया, उसके विरोध में मुझे अपनी बेटी, विधायक हरिद्वार ग्रामीण व अपने सहयोगियों के साथ बहादराबाद थाने में धरना देकर दो रात खुले आसमान के नीचे सोना पड़ा, अनन्तोगत्वा प्रशासन के समझ में स्थित आई और मुकदमों के मामले में उन्होंने हमारा आग्रह मान लिया। इस घटना ने सारी स्थितियां बदल दी।
हरिद्वार में कांग्रेस कमजोर हो यह स्थिति मेरा मन स्वीकार नहीं कर पाया और मैंने थोड़ा-थोड़ा कर हरिद्वार में अपनी सक्रियता बढ़ा दी। पंचायत के चुनाव में अपनी उपेक्षा को भूलकर मैं, वहां के कार्यक्रमों में भाग लेने लग गया, हरिद्वार के जन संघर्षों में भी भाग लेने लग गया, जब दैवीय आपदा आई, कई जगह जल भराव की स्थिति पैदा हुई, किसानों के धान, चरी, गन्ने की फसल को जल भराव से नुकसान हुआ, कई मोहल्ले पानी में डूब गये तो मैं किसानों के खेतों में भी गया, उनके बीच में भी गया, जिन मोहल्लों में पानी भरा था वहां मैंने कुर्सी में घंटों बैठकर के जल तप भी किया, प्रशासन का ध्यान स्थिति की गम्भीरता की ओर आकृष्ट किया। इकबालपुर चीनी मिल पर किसानों का 120 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है, जिसका भुगतान नहीं हो रहा था, किसानों में बड़ी निराशा थी, उनके भुगतान की आवाज उठाने के लिए इकबालपुर चीनी मिल पर भी मैंने रात-दिन का धरना दिया, वहीं इकबालपुर चीनी मिल के आगे रात बिताई, प्रशासन के लिखित आश्वासन और कुछ पेमेंट की करवाई करने के बाद मैं वहां धरने से उठा, गन्ने के मूल्य को लेकर के भी हमने संघर्ष जोता और सिडकुल में जब तालाबंदी हुई, कई जगह कई फैक्ट्रियां बंद हुई, सैकड़ों कर्मचारियों को नौकरी से निकाला तो हमने उसके खिलाफ भी आवाज उठाई, पदयात्राएं आयोजित की, गन्ने के खरीद मूल्य और भुगतान को लेकर किसानों के सम्मान में ट्रैक्टर यात्रा व पदयात्राएं निकाली। हालात ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं जन संघर्ष के मुद्दे, चाहे गन्ना हो, अघोषित बिजली कटौती हो, राशन कार्डों का मामला हो, आगे बढ़कर संघर्ष खड़ा करूं। होना तो यह चाहिए था कि इस संघर्ष में सब जुटते, जनता के सवाल हैं उनको कौन उठा रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि कांग्रेस उनके लिए दबाव डालती हुई दिखाई दे रही है। दुर्भाग्य से 2024 देखकर मेरे 2019 के मित्रों को मैं फिर पहाड़ी दिखाई देने लगा, 24-25 साल से हरिद्वार में लिपटा-जुड़ा हरीश रावत फिर बाहरी हो गया। सच भी है कि मेरा अभी अपने नाम पर मोहनरी के अलावा कहीं घर नहीं है। अब ज़िन्दगी का दो-तिहाई हिस्सा बीत गया,
अब घर की कमी खलने लगी है। इस बार मेरा निश्चय है कि मैं यह बाहरी-भीतरी जैसी राज्य विरोधी प्रवृत्तियों के खिलाफ दृढ़ता से खड़ा होऊंगा। मैं पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने को चाहने वाले लोगों का मनोबल गिरने नहीं दूंगा। आवश्यकता पड़ी तो घर खोजूंगा और बनाऊंगा भी। क्योंकि आज कांग्रेस की स्थिति यह नहीं है कि हम कहें कि मैं लडूंगा, आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि मुझसे बेहतर कौन लड़ेगा, यदि मेरा कोई सहयोगी बेहतर लड़ सकता है तो मैं उसके साथ खड़ा रहूंगा। हरिद्वार लघु भारत है, हरिद्वार लोकतंत्र का स्तंभ है। मैं लघु भारत के लिए भी और लोकतंत्र के लिए भी खड़ा रहूंगा। विपक्ष धर्म निभाते हुए कांग्रेस सत्ता की ओर बढ़े इसके लिए अपनी जिंदगी को दांव पर भी लगाऊंगा। खैर मैं समझता हूं कि इस बार पार्टी के सामने की गंभीर चुनौती को समझते हुए मेरे सारे मित्रगण भी विवेक और सहनशीलता से काम लेंगे। हम समन्वित तरीके से हरिद्वार का निर्णय लेंगे ताकि हरिद्वार का जो अपनापन हमारे साथ है उसका लाभ कांग्रेस पार्टी को मिल सके और हम हरिद्वार से कांग्रेस के उम्मीदवार को विजयी बनाने के लिए काम कर सकें। हरिद्वार, उत्तराखंड में लोकतंत्र के इंजन की भूमिका में है। एक अच्छी, स्थिर, सामाजिक न्याय पर आधारित संसदीय लोकतंत्र वादी ताकतों को शक्ति देने और एक अच्छी स्थिर सरकार बनाने में अपनी भूमिका अदा कर सारे उत्तराखंड की प्रशंसा अर्जित कर सकता है। मेरा यह नैतिक दायित्व है कि हरिद्वार ऐसा कर पाए, उसके लिए हालात तैयार करूं। मां गंगा जी मेरी मदद करें।