उत्तराखंड के इन विधायकों ने की थी देहरादून में सत्र कराने की मांग, RTI से हुआ बड़ा खुलासा……
देहरादून: उत्तराखंड के इन विधायकों ने की थी देहरादून में सत्र कराने की मांग, RTI से हुआ बड़ा खुलासाउत्तराखंड सरकार एक तरफ पलायन रोकने के लिए लगातार काम कर रही है. इसके लिए सरकार ने प्रदेश में पलायन केंद्र भी बना रखा है. वहीं उत्तराखंड के विधायक ही पहाड़ में रहना नहीं चाहते हैं. यहां तक की गैरसैंण में सत्र में जाने सेविधायको की हालत खराब हो जाती है।
विधायको ने 26 फरवरी को हुई विधान सभासत्र में न जाने के लिए सरकार को चिट्ठी लिखी थी जिसके बाद सत्र को देहरादून में कराया गया. अब 24 उन विधायको के नाम सामने आए है जिन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखी थी लेकिन अभी भी कुछ नाम सामने नहीं आ पाए है.मुख्यमंत्री कार्यालय सचिवालय में आरटीआई लगाकर के उक्त नाम को सार्वजनिक किए जाने को लेकर एक पत्र प्रेषित किया, जिसके जवाब में मुख्यमंत्री कार्यालय सचिवालय द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई गई. आरटीआई में 24 विधायकों के नाम का खुलासा किया गया. जबकि सूत्रों के अनुसार कुल 38 विधायकों मंत्रियों और माननीयों के नाम इस पत्र में शामिल थे लेकिन सरकार ने और 14 विधायकों के नाम नहीं बताए हैं।
आरटीआई से हुआ खुलासा
आरटीआई लगाने वाले रविंद्र ने कहा कि हमे अभी भी 14 नामो के बारे में जानकारी नहीं दी गई है जबकि बाकी नामों की लिस्ट हमे मिल चुकी है. इसको लेकर रविंद्र ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन नामों का खुलासा किया है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनता के पैसे से बने गैरसैंण विधानसभा भवन में जो विधायक, मंत्री सत्र नहीं कराना चाहते वे उत्तराखंड की जनता के हितैषी नहीं हो सकते, वे उत्तराखंड की जनता के विरोधी हैं, वे उत्तराखंड विरोधी हैं।
उन्होंने कहा कि जब उत्तराखंड का निर्माण हुआ था तो सभी जानते थे कि यह पहाड़ी क्षेत्र है और पहाड़ के विकास के लिए ही पृथक राज्य की मांग उठी एवं आंदोलन के बाद राज्य बना परंतु विधायकों ने पहाड़ से पलायन कर देहरादून में अपने आवास निवास बना लिए और अपने बच्चों का लालन-पालन एवं ब्याह शादी आदि भी यही करने तक सीमित रह गए।
कैसे रुकेगा पलायन?
उन्होंने कहा पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले मंत्री ,विधायक वही है जिन्होंने पलायन रोकने की बात कही जो खुद पहाड़ पर नहीं चढ़ना चाहते वो पहाड़ों से पलायन रोकने की बात कैसे कर सकते हैं. इन लोगों को पहाड़ विरोधी ना कहा जाए तो क्या कहा जाए यह लोग कभी भी पहाड़ के हितैषी नहीं हो सकते. पलायन रोकने और पहाड़ का विकास करने जैसी बातें इन लोगों के मुंह से खोखली लगती है.