देवेंद्र यादव दे रहे दरबारियों को तवज्जो, पार्टी के अन्य नेताओं को किया हुआ है दरकिनार, देवेंद्र प्रभारी रहे तो ये डर भी सता रहा नेताओ को….

देहरादून : चुनावी साल में कांग्रेस में भूचाल है हरीश रावत प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से खासे नाराज हैं और नाराजगी ऐसे ही नहीं है देवेंद्र यादव जिस तरह से प्रदेश में काम कर रहे हैं वह हरीश रावत को बिल्कुल रास नहीं आया है देवेंद्र यादव से नाराजगी का सबसे बड़ा कारण भी सामने आया है।

हरीश रावत ने अपने ट्वीट में नुमाइंदों का जिक्र किया है। उनके करीबियों का कहना है कि हरीश रावत का इस शब्द के जरिए देवेंद्र यादव पर निशाना था, जो प्रदेश के प्रभारी हैं। हरीश रावत के एक करीबी नेता ने कहा, ‘पार्टी के प्रभारी देवेंद्र यादव 2 से 3 लोगों के जरिए सब चीजें चला रहे हैं। दरबारियों को तवज्जो मिल रही है और राज्य के नेताओं को किनारे लगा दिया गया है।

समस्या की जड़ यही है। रावत के समर्थकों का कहना है कि लंबे समय से उन्हें साइडलाइन करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि रावत की इच्छा के बिना ही उन्हें पंजाब का प्रभारी बना दिया गया, जबकि उत्तराखंड और पंजाब में एक साथ ही चुनाव होने वाले हैं।

रावत के गुट के एक नेता ने कहा कि पंजाब के संकट को जिस तरह से रावत ने संभाला था, उसे देखते हुए उन्हें अपने गृह राज्य में अधिक ताकत देनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रावत कैंप का कहना है कि उनके समर्थकों को टिकट बंटवारे में तवज्जो न मिलने का डर है। ऐसे में पहले ही दबाव बनाने की रणनीति के तहत हरीश रावत ने लीडरशिप के खिलाफ मोर्चा खोला है।

रावत को लगता है कि यदि उनके समर्थकों को टिकट कम मिले तो जीत के बाद उनके सीएम बनने की राह में रोड़ा अटक सकता है। यही वजह है कि वह अपने समर्थकों के लिए लामबंदी करने में जुटे हैं।

पहले भी दो बार झटके झेल चुके हैं हरीश रावत

हरीश रावत हमेशा से कांग्रेस और गांधी परिवार के वफादार रहे हैं, लेकिन उन्हें दो झटके झेलने पड़े हैं। 2002 में भी वह पहली बार सीएम बनने की रेस में थे, लेकिन तब पार्टी ने सीनियर लीडर एनडी तिवारी को मौका दिया था। इसके बाद 2012 में उन्हें एक बार फिर से सीएम बनने की उम्मीद जगी थी, लेकिन तब काफी जूनियर और कम जनाधार वाले नेता विजय बहुगुणा को मौका दिया गया।

हालांकि 2013 की बाढ़ के संकट से सही ढंग से निपट पाने के आरोपों के बाद बहुगुणा को हटा दिया गया था। तब जाकर रावत को सत्ता मिल पाई थी। उस कार्यकाल में हरीश रावत काफी लोकप्रिय रहे, लेकिन 2017 में सत्ता से ही पार्टी बाहर हो गई। इस बार जीत की स्थिति में वह पूरे 5 साल के कार्यकाल की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन फिर से हालात उनके हाथ से बाहर जाते दिख रहे हैं।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *