उत्तराखंड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग करने वाले अकील अहमद पर कांग्रेस में रार, दूसरे खेमे का हैं करीबी ये बताने में जुटे गुट लेकिन तस्वीरों में तो इस गुट के करीब दिख रहा अकील अहमद…
देहरादून : उत्तराखंड में 2022 का चुनाव कांग्रेस हार चुकी है और चुनाव में हार का एक बड़ा कारण मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग रही इस मुद्दे को कांग्रेस के एक नेता अकील अहमद ने उठाया लेकिन इस मुद्दे को उठाते हैं बीजेपी के छोटे नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक ने इस मुद्दे को हवा दे दी और ध्रुवीकरण का एक बड़ा कारण यह मुद्दा भी बना।
वही उत्तराखंड में जब से अकील अहमद ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा उठाया तब से अकील अहमद कांग्रेस के तमाम नेताओं की आंखों में चुभने लगे हैं।
वहीं चुनाव हारने के बाद तो मानिये मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा उठाने वाले अकील अहमद को कोई कांग्रेसी अपना करीबी बताने तक को तैयार नहीं है हालात ये हैं की हार के बाद खेमे इस बात पे लगे हुए है कि ये जिस खेमे के हैं उसपर निशाना साध लिया जाए।
हाल के दिनों मे अकील अहमद ने ज़ब मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा उठाया तो पार्टी के किसी भी नेता ने इस मामले का ना खंडन किया बल्कि अकील अहमद को बाकायदा प्रदेश उपाध्यक्ष भी बना दिया गया।
वही अब ज़ब चुनाव हार गए तो नेता कहने में जुटे हुए हैं कि इस मुद्दे पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए था पार्टी में तो ये भी कहा जाने लगा हैं कि अकील को पार्टी तक से निकाल दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब हार के बाद पार्टी के अध्यक्ष का इस्तीफा तो मांग लिया गया लेकिन अकील अहमद अभी तक पार्टी का उपाध्यक्ष ही हैं।
प्रीतम खेमा जहाँ हरीश रावत खेमे पर अकील को बढ़ावा देने और आयेंन्द्र शर्मा चुनाव हार जाए इसके लिए मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा उठाने का अंदरखाने आरोप लगा रहें हैं वही हरीश खेमा प्रीतम खेमे पर ऐसा ही आरोप लगा रहा हैं।
वही सोशल मीडिया में अब अकील किसका करीबी हैं इस बात को लेकर भी कई तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं हालांकि तस्वीरें देखकर तो ऐसा लगता हैं की अकील अहमद प्रीतम सिंह खेमे के ज्यादा करीब हैं क्यूंकि ना केवल अकील अहमद दिल्ली में प्रीतम के साथ उत्तराखंड भवन में बैठे दिखाई दिए वही गणेश गोदियाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अकील अहमद उसी जीप में सवार थे जिसमे प्रीतम सिंह और उनके करीबी बैठकर कांग्रेस भवन आए थे।
आपको बता दे उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष बदलने के कुछ ही दिन पहले प्रीतम सिंह ने अकील अहमद को प्रदेश महामंत्री नियुक्त कर दिया।
जून 2021 दिल्ली में नेतृत्व परिवर्तन के दौरान अकील अहमद प्रीतम सिंह के खेमे के साथ ही दिल्ली में मौजूद रहा।
25 जनवरी 2020 को प्रीतम सिंह ने अकील अहमद को प्रदेश सचिव बनाया जो कि एआईसीसी से अप्रूव्ड लिस्ट में दर्ज है।
22 जुलाई 2021 को प्रीतम सिंह के रातों-रात हटते ही उनसे हाजी नूर हसन को भी अकील अहमद ने सचिव का पद दिलवा दिया
गोदियाल के अध्यक्ष बनने व पदभार ग्रहण करने के दिन प्रीतम सिंह गुट के साथ ही प्रदेश कार्यालय में दाखिल हुआ।
प्रीतम सिंह के पक्ष में मीडिया में उनके समर्थन में लगातार बयानबाजी भी करता रहा।
मुस्लिम यूनिवर्सिटी विवाद: वही हटाए जाने से पहले पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने ने इस मुद्दे पर कहा कि – मोदी-योगी ने दी मुद्दे को हवा, इसलिए पार्टी को हुआ नुकसान।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर उठा मुद्दा भाजपा के लिए फायदेमंद तो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने यह आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा को इस बहाने ध्रुवीकरण का मौका मिला गया।
कांग्रेस की हार के कारणों की समीक्षा पार्टी स्तर पर होली के बाद की जाएगी, लेकिन अब यह बात पार्टी को समझ आ गई कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक बयान ने चुनाव में पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाया है। पहले पार्टी ने इसे हल्के में लिया, लेकिन अब इसकी गंभीरता समझ में आ रही है। यह बातें प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने पत्रकारों से कही। उन्होंने माना कि इस मुद्दे ने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया है।
कांग्रेस भवन में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गोदियाल ने कहा कि मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बात कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने नहीं कही। एक कार्यकर्ता ने यह बात कही और भाजपा ने एक साजिश के तहत उसे मुद्दा बना दिया। प्रधानमंत्री मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने जब इन बातों को मंच से कहना शुरू किया तो भाजपा को ध्रुवीकरण का मौका मिल गया।
भाजपा वोटरों का ध्रुवीकरण करने में सफल रही
जिस कार्यकर्ता ने यह बात कही वह, कोई पदाधिकारी भी नहीं, लेकिन उनके पीछे उसे पदाधिकारी बना दिया गया। यह भी जांच का विषय है। गोदियाल ने यह भी जोड़ा कि वैसे उस कार्यकर्ता ने ऐसा कोई गुनाह भी नहीं किया था। उनसे सिर्फ एक मांग की थी, जिसमें कोई बुराई नहीं। यह उसका व्यक्तिगत मामला था।
इसमें पार्टी की तो कोई जिम्मेदारी नहीं थी। यदि यह बात हमारे घोषणापत्र में होती, तब पार्टी की जिम्मेदारी बनती। उन्होंने कहा कि भाजपा वोटरों का ध्रुवीकरण करने में सफल रही। राजनीति में मुद्दे लोगों के गले नहीं उतरते हैं, जबकि तथाकथित ध्रुवीकरण के जो मुद्दे होते हैं, उन्हें लोग जल्दी ग्रहण कर लेते हैं।