उत्तराखंड में दिग्गजों के चुनावी डर ने कांग्रेस की उम्मीदों पर फेरा पानी, कमेटी के सामने दिए हार को लेकर तर्क…..

देहरादून: प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से हरिद्वार सीट से हरीश रावत, टिहरी से प्रीतम सिंह को टिकट देकर चुनाव लड़ाने के लिए हाईकमान से पैरवी कर रही थी, लेकिन इन दिग्गजों ने चुनाव लड़ने से हाथ पीछे खींच लिए।

हरीश की जिद के आगे हाईकमान ने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार सीट पर टिकट दिया। वीरेंद्र का पहला चुनाव था।लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर कांग्रेस की हार के कारणों की वजह टटोल रही फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने पांचो लोकसभा की सीटों पर हार के कारण जुटाए और कमेटी के सदस्य दिल्ली रवाना हो गए।

हालांकि सबसे ज्यादा चर्चा टिहरी गढ़वाल और हरिद्वार सीट की समीक्षा की हो रही हैं । पार्टी नेताओं व पदाधिकारियों ने चुनावी हार पर खुल कर कमेटी के सदस्य एवं पूर्व सांसद पीएल पुनिया के समक्ष अपनी बात रखी। बताया कि दिग्गजों के चुनावी डर ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरा है।

चुनाव लड़ने से इनकार करने से माहौल नहीं बन पाया। जिन्होंने कभी पंचायत का चुनाव तक नहीं लड़ा, उन्हें लोकसभा का टिकट दे दिया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से हरिद्वार सीट से हरीश रावत, टिहरी से प्रीतम सिंह को टिकट देकर चुनाव लड़ाने के लिए हाईकमान से पैरवी कर रही थी, लेकिन इन दिग्गजों ने चुनाव लड़ने से हाथ पीछे खींच लिए

हरीश की जिद के आगे हाईकमान ने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार सीट पर टिकट दिया। वीरेंद्र का पहला चुनाव था। जबकि भाजपा ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को मैदान में उतारा था। वहीं, पांच साल से कांग्रेस गढ़वाल सीट पर मनीष खंडूड़ी को प्रत्याशी के रूप में तैयार कर रही थी। लेकिन चुनाव से ऐन वक्त खंडूड़ी पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गए।

चुनावी हार पर तीन कारण पूछे
पार्टी ने आनन-फानन में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल पर दांव लगाया। गोदियाल ने चुनाव में टक्कर तो दी, लेकिन आम लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वक्त कम मिला। टिहरी सीट पर जोत सिंह गुनसोला के पास विधानसभा चुनाव का अनुभव तो था, लेकिन राजनीतिक सक्रियता कम रही।

हार के ये भी रहे कारण
-दो साल से नहीं हुआ संगठन का विस्तार : लोकसभा चुनाव में बूथ स्तर पर पार्टी कमजोर रही। इसकी एक वजह दो साल से संगठनात्मक ढांचे का विस्तार नहीं हुआ। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से हाईकमान को भेजी नामों की सूची पर अभी तक मुहर नहीं लग पाई। चुनाव लड़ने के लिए बूथ व ब्लाक स्तर पर टीम नहीं थी।

विधायक भी अपने क्षेत्रों में नहीं दिला पाए बढ़त : मंगलौर व बदरीनाथ उपचुनाव में जीते कांग्रेस प्रत्याशियों को छोड़कर लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस के 18 विधायक थे, लेकिन सिर्फ पांच विधायकों के क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशियों को बढ़त मिली, जबकि 13 विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस पीछे रही।

पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी : लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में एकजुटता नहीं दिख। अंदरूनी गुटबाजी के कारण वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रचार में दमखम नहीं दिखाया। प्रत्याशी अकेले ही अपने क्षेत्रों में प्रचार में जुटे रहे।

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