आइये जानते है इस बार श्रावण माह में जलाभिषेक के कौन से शुभ मुहूर्त है…….
हरिद्वार: हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार मासिक शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ती है। लेकिन सावन की शिवरात्रि का अलग महत्व है। इस दिन भगवान आशुतोष की विशेष पूजा अर्चना के साथ शिवालयों में जलाभिषेक तथा कावंडियो द्वारा लाये गये गंगाजल से अभिषेक करके अपनी कांवड यात्रा को पूर्ण करने की परंपरा है।
पंचांग के अनुसार साल 2025 में सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू होकर 09 अगस्त को पूर्ण होगा। कांवड़ यात्रा 10 जुलाई से आरंभ होगी तथा सावन शिवरात्रि 23 जुलाई को समाप्त हो जाएगी।
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ👉 22 जुलाई प्रातः 7:05 से।
त्रयोदशी तिथि समाप्त👉 23 जुलाई दिन 26:29 पर।
मंदिरों में त्रयोदशी व चतुर्दशी के दिन शिवभक्त भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करेंगे।
22 जुलाई को प्रदोष काल, एवं 23 जुलाई को शिवलिङ्ग पर जलाभिषेक हेतु प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् 2 घण्टे 24 मिनट का समय श्रेष्ठ रहेगा।
श्रावण शिवरात्रि जलाभिषेक मुहूर्त
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निशिता काल पूजा समय 12:07 से 12:48 (24 जुलाई)
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय सायं 07:17 से 09:53 तक।
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय सायं 09:53 से मध्यरात्रि 12:28 (जुलाई 24)
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय मध्यरात्रि 12:28 से 03:03 तक (जुलाई 24)
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय अंतरात्रि 03:03 से 05:38 तक (जुलाई 24)
कांवड लाने तथा जलाभिषेक करने का पौराणिक महत्व
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हिन्दू धर्म शास्त्रों मे प्रतिवर्ष सावन मास में कांवड लाने तथा भगवान शिव का जलाभिषेक करने के कई कारणों का उल्लेख किया गया है, जिसमें से दो मुख्य कारण इस प्रकार से है-
1. प्रथम कारण:👉 सतयुग मे देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए थे, उनमे “अमृतकलश” से पहले “कालकूट” नामक हलाहल यानि विष भी प्राप्त हुआ था। सृष्टि की रक्षा तथा सर्वकल्याण हेतु उस भयंकर विष को स्थान देने के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान कर लिया, उस विष को कण्ठ मे धारण करने से विष के घातक प्रभाव से भगवान शिव का बदन भयानक गरमी से झुलसने लगा, तब इस भीषण जलन से मुक्ति प्रदान करने के लिए देवी-देवताओ, ऋषियों-मुनियों तथा शिवगणों ने गंगाजल, तथा अन्य पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक करके, विष की तीव्र ज्वाला को शान्त किया।
तभी से श्रावण मास मे शिवकृपा पाने हेतु सावनमास की पूजा, अभिषेक तथा कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई, और तभी से ही विष के कण्ठ मे धारण विष के प्रभाव से भगवान शिव को नीलकंठ भी क्हा जाने लगा ।
शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में आराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
2. द्वितीय कारण:👉 भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है, क्योंकि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे, और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। अतः शिवभक्तो ने भगवान शिव की प्रसन्नता पाने हेतु सावन मास में भगवान का जलाभिषेक करना प्रारम्भ कर दिया।
3.👉 एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित “पुरा महादेव” का गंगाजल से अभिषेक किया था।
सावन मे शिव जलाभिषेक का फल:
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श्रावण मास भगवान शिव का जलाभिषेक करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास में जो भी मनुष्य कांवड लाता अथवा शिव का जलाभिषेक करता है, उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है।
इन दिनों किया गया जलाभिषेक, दान-पुण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है। इस जलाभिषेक के फलस्वरूप अनेक कामनाएं तथा उद्देश्यों की पूर्ति हो सकती है, इससे सुखी वैवाहिक जीवन, संतान सुख, सुख-समृद्धि प्राप्ति, मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति, तथा संतान सुख अर्थात कुल वृद्धि कारक होता है। इससे लक्ष्मी प्राप्ति और यश-कीर्ति भी प्राप्त होती है।
कुछ लोगों का भ्रम है कि श्रावण भाद्रपद मास में नदियां रजस्वलारूप हो जाने से उनका जल पवित्र नहीं होता। परन्तु स्कन्दपुराण में स्पष्ट लिखा है कि सिन्धु, सूती, चन्द्रभागा, गंगा, सरयू, नर्मदा, यमुना, प्लक्षजाला, सरस्वती- ये सभी नंदसंज्ञा वाली नदियां रजोदोष से युक्त नहीं होती है। ये सभी अवस्थाओं में निर्मल रहती है।