उत्तराखंड में आज ब्रह्मलीन पायलट बाबा के उत्तराधिकारी की घोषणा, जापान की शिष्या कैवल्या संभालेंगी पदभार…….

हरिद्वार: श्री पंचदश नाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर महायोगी पायलट बाबा मंगलवार को मुंबई के अस्पताल में ब्रह्मलीन हो गए थे। उन्हें कल हरिद्वार के आश्रम में महासमाधि दी गई थी।

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामण्डलेश्वर ब्रह्मलीन महायोगी पायलट बाबा के उत्तराधिकारी की आज शुक्रवार को घोषणा कर दी गई है।

पायलट बाबा की जापान की रहने वाली शिष्या योगमाता साध्वी कैवल्या देवी(केको आईकोवा) को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। इसके साथ ही उन्हें पायलट बाबा आश्रम ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया है।

दो अन्य शिष्याओं महामंडलेश्वर साध्वी चेतनानंद गिरि और साध्वी श्रद्धा गिरि को ट्रस्ट का महामंत्री बनाया गया है। शुक्रवार को आयोजित सभा में जूना अखाड़े के महंत व संतों ने इसकी घोषणा की।

अकूत संपत्ति के मालिक थे पायलट बाबा
पायलट बाबा अकूत संपत्ति के मालिक थे। उनके सबसे ज्यादा अनुयायी रूस, यूक्रेन, जापान में हैं। उन्होंने देश में बिहार, नैनीताल, हरिद्वार, उत्तरकाशी, गंगोत्री आदि स्थानों पर पायलट बाबा के आश्रम हैं। पायलट बाबा के हरिद्वार स्थित आश्रम में काफी लागत से अंदर कार्य किया गया है। सबसे रोचक तथ्य है कि पायलट बाबा के आश्रम में करीबन एक करोड़ रुपये की लागत से केवल शौचालय बनाया गया है। पायलट बाबा की स्थिति यह रही कि वह कुंभ और विशेष पर स्नान पर अपने अलग साज-सज्जा के साथ शाही स्नान में शामिल हुआ करते थे। पायलट बाबा के हरिद्वार स्थित आश्रम में यूक्रेन रूस जर्मन आदि देशों के तमाम भक्त दिन-रात सेवा करने आते हैं।

कौन थे पायलट बाबा
पायलट बाबा का जन्म बिहार के रोहतास जिले के सासाराम में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनका पुराना नाम कपिल सिंह था। बाबा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उनका भारतीय वायु सेना में चयन हुआ। बाबा यहां विंग कमांडर के पद पर थे। बाबा 1962, 1965 और 1971 की लड़ाइयों में सेवा दे चुके हैं। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।

सेना की लड़ाई से दूर शांति और अध्यात्म की तरफ प्रवृत्त हो गए थे बाबा
बाबा बताते हैं कि, सन 1996 में जब वे मिग विमान भारत के पूर्वोत्तर में उड़ा रहे थे तब उनके साथ एक हादसा हुआ था। उनका विमान से नियंत्रण खो गया। उसी दौरान बाबा को उनके गुरु हरि गिरी महाराज का दर्शन प्राप्त हुए और वे उन्हें वहां से सुरक्षित निकाल लिए। यही वो क्षण था जब बाबा को वैराग्य प्राप्त हुआ और वे सेना की लड़ाई से दूर शांति और अध्यात्म की तरफ प्रवृत्त हो गए।

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