उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिनसे आस थी, वही सियासी विरोधियों के खास बन गए……
देहरादून: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिनसे आस थी, वही सियासी विरोधियों के खास बन गए। चुनाव के ऐन वक्त पर कांग्रेस के कई नेता साथ छोड़ गए। चुनावी जंग में उतरे प्रत्याशियों को भी इनकी कमी खल रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पार्टी छोड़ने वाले साथ होते तो कांग्रेस प्रत्याशियों को चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने में सहयोग मिलता।
लोकसभा चुनाव का एलान होने के बाद कांग्रेस को एक के बाद एक नेताओं के पार्टी छोड़ने से कई झटके लगे। बदरीनाथ विधानसभा सीट से विधायक रहे राजेंद्र भंडारी, पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण, धन सिंह नेगी, मनीष खंडूड़ी, महेश शर्मा, अशोक वर्मा, पीके अग्रवाल, लक्ष्मी अग्रवाल समेत कई नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए।
गढ़वाल सीट से कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल को चुनाव में राजेंद्र भंडारी से काफी उम्मीदें थीं। गोदियाल ने यहां तक कहा था कि भंडारी ने चुनाव लड़ने के लिए मुझे आगे किया। जब पार्टी ने टिकट दिया तो साथ छोड़कर चले गए। भंडारी का पार्टी छोड़ना हमारे लिए नुकसान है। लेकिन राजनीतिक में एक व्यक्ति जाता है तो दूसरा आता है। किसी व्यक्ति का स्थान खाली नहीं रहता है।
कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि भाजपा के दबाव की राजनीतिक के चलते कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़ कर गए हैं। लेकिन उनके जाने से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होगा। पार्टी छोड़ कर वे लोग गए जिनके कामों की जांच चल रही और उनके कार्रवाई में फंसने की नौबत है या सत्ता दल के बड़े नेताओं के पार्टनर हैं।
पार्टी का कार्यकर्ता एक सिपाही की तरह कांग्रेस के साथ खड़ा है। आने वाले समय में हम इस बात का खुलासा करेंगे कि दल-बदल करने वाले किस नेता पर कितना दंड आरोपित किया गया था और वह दंड वसूला गया है या नहीं?। कांग्रेस यह भी खुलासा करेगी कि किस नेता की सत्तारूढ़ दल के नेताओं के साथ पार्टनरशिप थी।