उत्तराखंड में सख्त हुआ धर्मांतरण कानून, 10 साल की सजा का प्रावधान…..

देहरादून: उत्तराखंड में जबरन मत परिवर्तन कराने या ऐसी कोशिश करने वालों को अधिक समय जेल में बिताना और अधिक जुर्माना देना होगा। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तुलना में इस कानून के प्रविधान अधिक कड़े करते हुए संशोधन किए गए हैं। कानून का उल्लंघन करने पर अब न्यूनतम एक वर्ष के स्थान पर दो वर्ष जेल की सजा काटनी होगी।

जेल में अधिकतम पांच साल के स्थान पर सात साल रहना होगा। जुर्माने की राशि 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये की गई है। इस कानून के अंतर्गत अब सभी अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल ने बुधवार को यह अहम निर्णय लेते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक के मसौदे को स्वीकृति दी। मंत्रिमंडल ने अन्य अहम निर्णय में।

मूल अधिनियम की धारा-चार में संशोधन किया गया। इसके अंतर्गत कोई व्यथित व्यक्ति या उसके माता-पिता या भाई-बहन ऐसे मत परिवर्तन के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकेंगे, जो धारा-तीन का उल्लंघन करते हों। धारा तीन के अंतर्गत प्रलोभन, परपीड़न, दुर्व्यपदेशन, बल, कपटपूर्ण साधन से किसी व्यक्ति का एक मत से दूसरे मत में परिवर्तन अथवा इसका षडयंत्र नहीं किया जा सकेगा।

मूल अधिनियम में व्यक्ति की अनुमति के बगैर उसे मत परिवर्तन को विवश करने या इस संबंध में षडयंत्र रचने वाले को न्यूनतम एक साल और अधिकतम पांच साल जेल की सजा का प्रविधान किया गया। साथ में न्यूनतम जुर्माना 15 हजार रुपये रखा गया था। यही व्यवस्था उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 में भी है। उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम-2018 की धारा-पांच में संशोधन कर न्यूनतम जेल की अवधि दो वर्ष और अधिकतम सात वर्ष की गई है। साथ में जुर्माना राशि भी बढ़ाकर 25 हजार रुपये की गई है।

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