उत्तराखंड के लिए सुप्रीम कोर्ट से बड़ी खबर , चारधाम परियोजना को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है ,बढ़ सकेगी चौड़ाई….

देहरादून : चारधाम परियोजना को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। ऐसे में अब उत्तराखंड में निर्मित की जा रही सड़कों की चौड़ाई को बढ़ाया जा सकेगा। नरेंद्र मोदी सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने की इजाजत दे दी है और इसके साथ ही डबल लेन हाइवे बनाने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत न्यायिक समीक्षा में सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती। हाइवे के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने में रक्षा मंत्रालय की कोई दुर्भावना नहीं है। मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत यहां सरकार की नीतिगत पसंद पर सवाल नहीं उठा सकती है और इसकी अनुमति नहीं है। राजमार्ग जो सशस्त्र बलों के लिए रणनीतिक सड़कें हैं, उनकी तुलना ऐसी अन्य पहाड़ी सड़कों से नहीं की जा सकती है। हमने पाया कि रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर एमए में कोई दुर्भावना नहीं है। MoD सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकता को डिजाइन करने के लिए अधिकृत है। सुरक्षा समिति की बैठक में उठाई गई सुरक्षा चिंताओं से रक्षा मंत्रालय की प्रामाणिकता स्पष्ट है। सशस्त्र बलों को मीडिया को दिए गए बयान के लिए पत्थर में लिखे गए बयान के रूप में नहीं लिया जा सकता है। न्यायिक समीक्षा के अभ्यास में यह अदालत सेना की आवश्यकताओं का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है। इस मामले में केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि चीन बार्डर के चलते सुरक्षा की दृष्टि से सड़कों की चौड़ाई बढ़ाना जरूरी है। ये राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। पर्यावरण का ध्यान रखा जा रहा है।

गौरतलब है कि 11 नवंबर को चारधाम परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र और याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों से दो दिनों में लिखित सुझाव देने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि करीब 900 किलोमीटर की चार धाम ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाई जा सकती है या नहीं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सितंबर 2020 के आदेश में संशोधन की मांग की, जिसमें चारधाम सड़कों की चौड़ाई को 5.5 मीटर तक सीमित करने का आदेश दिया था।

केंद्र का कहना है कि ये भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर जाने वाली सीमा सड़कों के लिए फीडर सड़कें हैं। उन्हें 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि हिमालय के पर्यावरण की स्थिति खतरे में है। अभी तक आधी परियोजना पूरी हुई है। हादसा दुनिया ने देखा है, अब आपको पूरा करना है तो जरूर करें, लेकिन बर्बादी के लिए तैयार रहें।

नुकसान कम करने के उपाय करने की बजाय उसे बढ़ाया जा रहा है। सड़कों को चौड़ा करने के उपाय तकनीकी और पर्यावरण उपायों के साथ होने चाहिए। डिजाइन, ढलान, हरियाली, जंगल कटान, विस्फोट से पहाड़ काटने आदि को ध्यान में रखते हुए संबद्ध विशेषज्ञों की राय से करना चाहिए।गोंजाल्विस ने कहा कि ऋषिकेश से माणा इलाके में विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई पहाड़ों को विस्फोट से तोड़ने के कार्यों से भू स्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़ और बादल फटने की भी घटनाएं बढ़ी हैं। इस बाबत गठित उच्चाधिकार समिति यानी एचपीसी की भी रिपोर्ट्स ने कई गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया है। हिमालय के उच्च इलाकों में पचास किलोमीटर के दायरे में कई हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। चारधाम क्षेत्र में भी विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण जारी है। फौरन इनको रोकने की जरूरत है। रिफ्लेक्टर लगाए जाएं, जिनसे पहाड़ों की छाया वाले इलाकों में भी रोशनी जाए.हरियाली बढ़े। कई दर्रों में तो जहां सूरज की रोशनी नहीं आती वहां वनस्पति भी नहीं होती। इस उपाय से हरियाली बढ़ेगी। इन उपायों का आने वाली पीढ़ियों पर असर पड़ेगा क्योंकि पर्यावरण, गंगा यमुना जैसी नदियों के प्रवाह और संरक्षण पर असर पड़ेगा.भगवान चार धाम में नहीं, बल्कि प्रकृति में है।

वहीं केंद्र ने SC को बताया कि उत्तराखंड में भूस्खलन की चपेट में आने वाले क्षेत्रों के बारे में अध्ययन चल रहा है, जहां भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली सड़कों का निर्माण किया जाना है। जनवरी 2021 में भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण, रक्षा भूवैज्ञानिक अनुसंधान संगठन और टिहरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन के साथ संवेदनशील स्थानों पर अध्ययन, नदियों/घाटियों में डंपिंग को रोकने के लिए कदम और अन्य मुद्दों के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या पहाड़ी कटाव के प्रभाव को कम करने और भूस्खलन को रोकने के लिए कोई अध्ययन किया गया है। केंद्र ने कहा कि स्थल का दौरा किया जा रहा है। रिपोर्ट्स का इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्र की सुरक्षा को प्राथमिकता है। सुरक्षा को अपग्रेड करने की जरूरत है। विशेष रूप से हाल के दिनों में सीमा की घटनाओं को देखते हुए रक्षा से जुड़ी चिंताओं को छोड़ा नहीं जा सकता।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, लेकिन रक्षा और पर्यावरण दोनों की जरूरतें संतुलित होनी चाहिए। वहीं केंद्र ने सड़क चौड़ी करने की मांग करते हुए कहा था कि चीन द्वारा दूसरी तरफ जबरदस्त निर्माण किया है। चीन दूसरी तरफ हेलीपैड और इमारतें बना रहा है। टैंक, रॉकेट लांचर और तोप ले जाने वाले ट्रकों को इन सड़कों से गुजरना पड़ सकता है। इसलिए रक्षा की दृष्टि से सड़क की चौड़ाई दस मीटर की जानी चाहिए। याचिकाकर्ता NGO की ओर से कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा था कि सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं और राजनीतिक सत्ता में कोई उच्च व्यक्ति चार धाम यात्रा पर राजमार्ग चाहता था। सेना तब एक अनिच्छुक भागीदार बन गई। इस साल बड़े पैमाने पर भूस्खलन, पहाड़ों में नुकसान को बढ़ा दिया है।

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