उत्तराखंड सरकार का फैसला, गेस्ट शिक्षकों को मिली बड़ी राहत, स्थाई शिक्षक हो गए नाराज..…
देहरादून : एक लंबे समय से अपने हाथ को लेकर लड़ रहे और अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे अतिथि शिक्षकों को सरकार का साथ मिल गया है। प्रदेश में वर्तमान में कार्यरत 4418 अतिथि शिक्षकों के पदों को अब रिक्त नहीं माना जाएगा। यानि लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग से चुनकर आने वाले एलटी और प्रवक्ता की पोस्टिंग के लिए अतिथि शिक्षकों को नहीं हटना पडेगा कैबिनेट के फैसले से अतिथि शिक्षकों में खुशी की लहर है।
राज्य के सरकारी स्कूलों में प्रवक्ता के 2993 और एलटी के 1425 पदोंअतिथि शिक्षक कार्यरत हैं। राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए वर्ष 2015-16 में अतिथि शिक्षकों के रूप में अस्थायी नियुक्ति की व्यवस्था शुरू की गई थी।
अब तक स्थायी शिक्षकों का नियुक्ति होने पर अतिथि शिक्षकों को हटा दिया जाता था। हालांकि सरकारने हटने वाले अतिथि शिक्षकों को दूसरे स्कूलों में नियुक्ति का रास्ता खुला रखा था लेकिन उस पर कभी पूरी तरह अमल नहीं हो पाया। पिछले दिनों भी एलटी से प्रवक्ता पद पर प्रमोशन और नए प्रवक्ताओं की नियुक्ति की वजह से कई अतिथि शिक्षकों का हटना पड़ा। चार जुलाई की कैबिनेट बैठक में अतिथि शिक्षक के हित में उनके पदों को रिक्त न मानने पर सहमति बन गई थी लेकिन तब से आदेश नहीं हो पाया था। अब कैबिनेट ने इस पर विधिवत निर्णय
नई व्यवस्था में अतिथि शिक्षकों के पदों को एक तरह से स्थायी मान लिया गया है। जिन पदों पर अतिथि शिक्षक नियुक्त होंगे उन्हें रिक्त नहीं माना जाएगा। माध्यमिक अतिथि शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह दानू ने इस फैसले के लिए सरकार का आभार जताया। कहा कि पद को रिक्त न मानने के फैसले पर जल्द से जल्द आदेश भी कर दिया जाए।
नाखुश, पुनर्विचार की मांग अतिथि शिक्षकों के पद को रिक्त न मानने के फैसले से स्थायी शिक्षकों में नाराजगी है। शिक्षक संघ के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष केके डिमरी ने कहा कि अतिथि शिक्षक के नियुक्ति पत्र में स्पष्ट लिखा है कि उनके पद अस्थायी हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी यही परिभाषित करते हैं।
निवर्तमान महामंत्री डॉ. सोहन सिंह माजिला ने कहा कि यदि अतिथि शिक्षकों के पद रिक्त नहीं माने जाते है, स्थायी शिक्षकों के प्रमोशन और ट्रांसफर प्रभावित होंगे। यदि कैबिनेट ये इस प्रकार का निर्णय हुआ है, सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए।