उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड के समर्थन में फिर बोले त्रिवेन्द्र, हम परिवर्तन चाहते हैं तो हमको ये विरोध भी बर्दाश्त करना चाहिए….

देहरादून : पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के समर्थन में खुलकर उतर आए हैं। उन्होंने कहा कि देवस्थानम बोर्ड राज्य गठन के बाद से 20 साल में सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है। केदारनाथ में उनके साथ जो भी हुआ, वह देवभूमि की पहचान के अनुकूल नहीं है। इस बारे में वह केवल इतना ही कहना चाहेंगे कि बाबा केदारनाथ उन्हें क्षमा करें।

केदारनाथ से लौटे त्रिवेंद्र मंगलवार को मीडिया कर्मियों से बातचीत कर रहे थे। देवस्थानम बोर्ड के विरोध को लेकर उन्होंने कहा कि इसमें 51 मंदिर और भी हैं, जिनमें रखरखाव की समस्या है। यह भी समझ लेना चाहिए कि हमारे देश में तमाम जगहों पर ट्रस्ट और बोर्ड हैं। वहां उनके गठन के बाद कितना बड़ा परिवर्तन आया है, उसके अध्ययन की भी जरूरत है।

ये ट्रस्ट और बोर्ड विश्वविद्यालय व मेडिकल कॉलेज तक संचालित कर रहे हैं। तमाम छोटे बड़े मंदिरों का रखरखाव बहुत अच्छे तरीके से शुरू हुआ है। भविष्य की दृष्टि से योजनाएं बनी हैं। उसका लाभ यात्रियों को भी हुआ है और ट्रस्ट को भी। उन्होंने जागेश्वर धाम ट्रस्ट का उदाहरण दिया। इसलिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है। कुछ लोगों को पीड़ा होगी। हम लोगों को चिंता उनकी करनी है, जो अपनी पीड़ा के हरने के लिए यहां पर प्रार्थना करने के लिए आते हैं। दर्शन न करने देना क्या उचित है।

उन्होंने कहा कि कल जो कुछ हुआ, मुझे लगता है कि सभ्य समाज उसकी अनुमति नहीं देता है। कुछ लोग राजनीतिक कारणों से भी हैं, कुछ लोग स्वार्थ वश तो कुछ गफलत में भी हैं। ये नाजायज दबाव है। सरकार ऐसे झुकेगी तो आगे समय में सरकारों के लिए बहुत बड़ी समस्या होगी। कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार और किसानों के हित में केंद्र सरकार ने कृषि कानून बनाया।

कुछ किसानों ने इसका विरोध किया। कोई यह बताने को तैयार नहीं कि विरोध किस बात का है। कानून में गलत क्या है। संसद के अंदर बिल विरोधी सांसद यह बता नहीं पाए कि किस बात को लेकर विरोध है। ऐसा ही देवस्थानम बोर्ड को लेकर है। यह विरोध के लिए विरोध हो रहा है। यह उचित नहीं है।बदरी-केदार के चार मंदिरों ने बोर्ड में शामिल होने के लिए कहा था

त्रिवेंद्र ने कहा कि बदरी-केदारनाथ समिति में 47 मंदिर पहले से थे। जिनमें से चार मंदिरों के पुजारियों ने स्वयं लिखकर दिया था कि उन्हें देवस्थानम बोर्ड में शामिल कर लिया जाए। जो समर्थन कर रहे हैं उनको नहीं सुना जा रहा है। अभी केवल उनकी सुनाई दे रही है, जो लोग विरोध कर रहे हैं। जिन लोगों ने स्वयं स्वीकार किया है। जो लोग समर्थन कर रहे हैं। उनको भी सुना जाना चाहिए।

सवा सौ करोड़ हिंदुओं की भावनाओं का भी सम्मान होना चाहिए
तमाम मंदिरों विशेषकर चारों धामों पर देश-दुनिया के सवा सौ करोड़ हिंदुओं का अधिकार है। उनकी भावनाओं का भी सम्मान होना चाहिए कि वे क्या चाहते हैं। उसको भी देखा जाना चाहिए। वह त्रिजुगीनारायण, गोपीनाथ मंदिर, बदरीनाथ, भविष्य बदरी गए, वहां किसी न कोई विरोध नहीं किया।

परिवर्तन चाहते हैं तो विरोध सहना होगा
त्रिवेंद्र ने कहा कि वास्तव में हम परिवर्तन चाहते हैं तो हमको ये विरोध भी बर्दाश्त करना चाहिए। जब कोई बड़ा सुधार होता है तो उसका विरोध होता है। सती प्रथा, बाल विवाह व विधवा विवाह का भी विरोध हुआ। यदि हम जनता का समर्थन चाहते हैं, तो लोगों के विरोध के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए।

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