आइये जानते है कब है देवउठनी एकादशी 1 या 2 नवंबर ? जान लें सही तारीख, मुहूर्त, पूजा विधि, आरती और पारण का समय……..
देहरादून: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। जानें देवउठनी एकादशी की सही तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि, पारण का समय सहित अन्य जानकारी।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागृत होते हैं। विष्णु भगवान के जागरण के साथ ही चातुर्मास का समापन होता है और विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन भक्त विशेष विधि से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत का पालन करते हैं। इस वर्ष एकादशी तिथि दो दिन पड़ने के कारण व्रत की सही तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि किस दिन व्रत और पारण करना अधिक शुभ रहेगा। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की सटीक तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पारण समय, विष्णु जी आरती और पूजा मंत्र।
कब है देवउठनी एकादशी ?
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी, जो 2 नवंबर को शाम 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगाी। ऐसे में गृहस्थ लोग 1 नवंबर को और वैष्णव संप्रदाय के लोग 2 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत रखेंगे। दरअसल, गृहस्थ लोग पंचांग के अनुसार और वैष्णव परंपरा के साधक व्रत का पारण हरिवासर करते हैं।
देवउठनी एकादशी व्रत पारण का समय
1 नवंबर को व्रत रखने वाले जातक 2 नवंबर को व्रत का पारण करेंगे। इस दिन दोपहर 01 बजकर 11 मिनट से 03 बजकर 23 मिनट तक पारण करना सबसे शुभ है।
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देवउठनी एकादशी पूजा विधि 2025
देवउठनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागें, स्नान करके अपने मन, शरीर और घर-परिवार को शुद्ध करें। इसके बाद स्वच्छ एवं सम्भव हो तो पीले वस्त्र धारण करें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। अब भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
पूजन से पहले आचमन करें और शुद्ध आसन पर बैठकर श्री हरि विष्णु के समक्ष पीले पुष्प, पीला चंदन, तुलसी दल और पुष्पमाला अर्पित करें। प्रसाद में पीली मिठाई, गन्ना, सिंघाड़ा, मौसमी फल और शुद्ध जल का भोग लगाएं। फिर घी का दीपक एवं धूप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु की मंत्रोच्चार के साथ आराधना करें।
इस दिन विष्णु चालीसा, देवउठनी एकादशी व्रत कथा, श्री हरि स्तुति और विष्णु मंत्रों का जप विशेष पुण्यदायी माना जाता है। पूजा के उपरांत विष्णु जी की आरती करें और किसी भी भूल या कमी के लिए क्षमा याचना करें।
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दिनभर व्रत का पालन करते हुए संयम और सात्त्विकता बनाए रखें। शाम के समय पुनः पूजा करें और घर के मुख्य द्वार पर घी का दीपक जलाएं, जिससे शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
अगली सुबह द्वादशी तिथि में शुभ समय देखकर व्रत का पारण करें और भगवान विष्णु को धन्यवाद देकर प्रसाद ग्रहण करें।

