आइये जानते है 4 या 5 नवंबर में कब है देव दिवाली ? इस दिन देवता क्यों मनाते हैं दिवाली और धार्मिक महत्व…….

देहरादून: सनातन धर्म में देव दीपावली का खास महत्व है। यह पर्व दीपावली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। इसे देव दिवाली या “देवताओं की दिवाली” भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र नगरों में से एक, वाराणसी में मनाया जाने वाला एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है।

इस साल देव दीपावली 5 नवंबर को मनाई जाएगी। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और इस दौरान गंगा के किनारे हजारों दीप जलाकर असुरों पर देवताओं की विजय का उत्सव मनाया जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

कब है देव दिवाली 2025 ?
वैदिक पंचांग के मुताबिक इस साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 04 नवंबर 2025 को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी, जो 05 नवंबर 2025 को सुबह 06 बजकर 47 मिनट तक है। ऐसे में देव दीपावली का पर्व 05 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन शाम को 05 बजकर 15 मिनट से लेकर शाम 07 बजकर 50 मिनट तक पूजा करना लाभकारी हो सकता है। इस समय आप दीप दान भी कर सकते हैं।

देव दीपावली का महत्व
शास्त्रों के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने अपने अत्याचारों से देवताओं, ऋषि-मुनियों को परेशान कर रखा था। इसलिए इसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भोलेनाथ के पहुंचे और उनसे सहायता की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया। महादेव की इस विजय के उपलक्ष्य में सभी देवी-देवताओं ने काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाया। आपको बता दें कि देव दीपावली के इस विशेष पर्व में गंगा के घाटों पर हजारों मिट्टी के दीपक जलाने का विशेष महत्व है।

वाराणसी में गंगा के किनारे विभिन्न घाटों पर दीपों की रौशनी का यह दृश्य अत्यंत अलौकिक और दिव्य होता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और इन दीपों के प्रकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। गंगा आरती के दौरान विशेष प्रार्थनाएं और भगवान शिव का पूजन किया जाता है।

इस अवसर पर भक्त गंगा में स्नान करते हैं, जिसे आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है, और अन्नदान का आयोजन करते हैं, जिसे पुण्य अर्जित करने का माध्यम माना जाता है।

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