भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध है आज, जानें तर्पण का सही समय और पितरों के श्राद्ध की विधि……

हरिद्वार: भाद्रपद पूर्णिमा पर इस बार पितृ पक्ष का संयोग दुर्लभ संयोग बन रहा है. ज्योतिषियों के अनुसार, यह दिन बहुत ही खास और विशेष फलदायी माना जा रहा है. तो चलिए जानते हैं कि पितृ पक्ष पर आज पूर्णिमा का श्राद्ध कैसे होगा।

इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत आज से हो रही है और यह दिन बहुत ही खास माना जा रहा है. दरअसल, इस बार कल पितृ पक्ष पर भाद्रपद पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण का संयोग बन रहा है. ज्योतिषियों के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा बहुत पुण्यदायी मानी जाती है क्योंकि इस दिन स्नान, दान और व्रत करने से विशेष फल मिलता है. साथ ही, यह तिथि पितरों की कृपा पाने के लिए भी उत्तम मानी जा रही है क्योंकि इस स्नान-दान के साथ पितरों और पूर्वजों का पिंडदान किया जाएगा. तो चलिए जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा पर पितरों का किस विधि से श्राद्ध किया जाएगा।

पितृ पक्ष में अनुष्ठान का समय।
कुतुप मुहूर्त- 7 सितंबर यानी आज सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक।

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जहां भगवान राम ने किया था पिंडदान, जानिए पितरों के उस मोक्षस्थल का इतिहास। पितृपक्ष आज से शुरू, घाट पर नहीं जा सकते तो घर पर ऐसे करें पितरों का श्राद्ध।

गरुड़ पुराण के तहत पितृ पक्ष में इन नियमों का पालन करें।
रौहिण मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 44 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 34 मिनट तक ।

अपराह्न मुहूर्त- दोपहर 1 बजकर 34 मिनट से 4 बजकर 05 मिनट तक

भाद्रपद पूर्णिमा स्नान-दान का मुहूर्त।
भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर की आधी रात 1 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 7 सितंबर को ही रात 11 बजकर 38 मिनट पर होगा. इस दिन चंद्रोदय शाम 6 बजकर 26 मिनट पर होगा।

स्नान दान का मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 31 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. इसी समय से पितरों के श्राद्ध का भी समय शुरू हो जाएगा।

भाद्रपद पूर्णिमा पर पितरों के श्राद्ध की विधि।
इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें. फिर मन ही मन यह संकल्प लें कि आज का दिन पितरों को समर्पित है. इसके बाद, एक पात्र में जल लें और उसमें काले तिल, कुशा और थोड़ा सा दूध मिलाकर पितरों के नाम का तर्पण करें. फिर, जल को जमीन पर छोड़ते समय पितरों का स्मरण करें. इस दिन घर में सात्विक भोजन तैयार करें और यह भोजन पितरों को अर्पित करें. इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर विदा कर दें. साथ ही, अन्न, वस्त्र और मिठाई गरीबों को भी दान जरूर दें।

पूर्णिमा के दिन पर श्राद्ध का मतलब है पितरों के लिए प्रेम और सम्मान व्यक्त करना. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और पितरों का आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है।

कौन कर सकता है पितरों को जल अर्पण?
पितृ पक्ष में घर का कोई वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है. अगर घर में वरिष्ठ पुरुष सदस्य ना हो तो घर का कोई भी पुरुष सदस्य तर्पण कर सकता है. पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है. वर्तमान में स्त्रियां भी तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं लेकिन पितृपक्ष की सावधानियों का ख्याल रखते हुए ही तर्पण करें।

पितृपक्ष के नियम
पितृपक्ष में हमें अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए. इस दौरान जल दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दोपहर के समय देना चाहिए. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. पितृपक्ष में जिस दिन पूर्वज के देहांत की तिथि होती है उस दिन अन्न और वस्त्र का दान करना चाहिए।

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