आज 3 शुभ योग में भाई दूज, तिलक के लिए बहनों को मिलेगा 2.15 घंटे का शुभ मुहूर्त, जानिए इसका महत्व, विधि, शुभ समय…..

देहरादून: शुभ मुहूर्त में बहनें भाई को रोली से तिलक कर कलावा बांधती हैं, यमराज और यमुना की कथा भी जुड़ी है। उपहार और भोजन का आदान प्रदान होता है।

भाई दूज का पर्व हर भाई-बहन के लिए बेहद खास होता है। दिवाली के दूसरे दिन पड़ने वाला यह त्योहार रिश्ते की उस मिठास और अपनापन का प्रतीक है। इस बार भाई दूज 23 अक्तूबर दिन गुरुवार को है। इस दिन बहने अपने भाई के तिलक कर उनकी लंबी उम्र और तरक्की की कामना करती हैं। साथ ही, बहनें अपने भाइयों को प्यार के साथ अपने हाथों से बना हुआ भोजन खिलाती हैं। तो भाई भी अपनी बहन को आशीर्वाद और गिफ्ट देते हैं। इस दिन कई लोग तिलक लगाने में गलती करते हैं, जोकि ठीक नहीं माना जाता है। ऐसे में सवाल है कि आखिर भाई दूज पर भाई के तिलक कैसे करें। टीका के समय मुंह किस तरफ रखें? तिलक लगाने के तरीके क्या हैं ?

आइए जानते हैं इस बारे में-

भाई दूज का शुभ मुहूर्त
23 अक्टूबर को भाई दूज के दिन ब्रह्म मुहूर्त 04:45 ए एम से 05:36 ए एम तक है, जो स्नान के लिए उत्तम समय माना जाता है. उस दिन का शुभ समय यानी अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:43 ए एम से दोपहर 12:28 पी एम तक है. अमृत काल शाम में 06:57 पी एम से रात 08:45 पी एम तक रहेगा।

तिलक कराते समय किस तरफ रखें मुंह।
शास्त्रों के अनुसार, भाई को तिलक लगाते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. बता दें कि, उत्तर दिशा धन और अवसरों की दिशा मानी जाती है. इस दिशा में तिलक करने से भाई के करियर और आर्थिक जीवन में स्थिरता आती है. पूर्व दिशा ज्ञान, बुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की दिशा मानी जाती है।

भाई को टीका करने की विधि।
भाई दूज पर बहनें सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें. फिर एक थाली तैयार करें और इस थाली में गोला, कलावा, रोली, अक्षत, दीया और मिठाई रखें. थाली की सबसे पहले पूजा करें, फिर शुभ मुहूर्त में इस थाली में रखी रोली को भाई के माथे पर लगाएं. इसके बाद हाथ में कलावा बांधें. फिर दीपक से आरती उतारें और भाई का मुंह मीठा करती हैं. इसके बाद भाई अपनी सामर्थ्यानुसार बहन को उपहार दें. अंत में, बहन-भाई एक साथ भोजन करें।

भाई दूज की पौराणिक कथा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज शनिदेव के बड़े भाई हैं, जिनके पिता भगवान सूर्य देव हैं. सूर्य देव की दो पुत्री हैं. यमुना और भद्रा. यमुना का उद्गम स्थल उत्तरकाशी के यमुनोत्री से माना जाता है. वहीं उत्तरकाशी के नचिकेता ताल में यमराज की गुफा भी है, जिसका रास्ता पाताल लोक तक जाने की मान्यता है. मान्यता है कि यमराज हर साल भैया दूज के दिन अपनी बहन यमुना से मिलकर यह पर्व मनाते हैं और उसके बाद वापस लौट जाते हैं।

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