दे‌वउठनी एकादशी: इस विधि से जगाएं देवों को, जानें मंत्र और गाएं उठो देव, जागो देव…..

देहरादून: कार्तिक मास की एकादशी को दे‌वउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहते है, इस दिन देवों यानी श्रीहरि को जगाया जाता है। देवों को जगाने के लिए फल, सिंघाड़े, गन्ना, आलू, मूली, तिल, आदि चीजें भगवान को अर्पित की जाती है।

कार्तिक मास की एकादशी को दे‌वउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहते है, इस दिन देवों यानी श्रीहरि को जगाया जाता है। देवों को जगाने के लिए फल, सिंघाड़े, गन्ना, आलू, मूली, तिल, आदि चीजें भगवान को अर्पित की जाती है। जिससे देव जागें और संसार में मंगल करें। वैसे तो कार्तिक मास में हर दिन ओम नमो नारायणाय मंत्र का जाप करना चाहिए। लेकिन अगर आप पूरे महीने इस मंत्र को ना पढ़ पाएं तो कम से कम देवउठनी एकादशी के दिन इस मंत्र से श्रीहरि की आराधना करें।

इस दिन श्रीहरि की पूजा से व्यक्ति सभी प्रकार के दुखों से छूट जाता है औ रोग-शोक से रहित वेकुण्ठ धाम को जाता है। कार्तिक मास में विष्णुसहस्रनाम का पाठ भी करना चाहिए। एकादशी के दिन से भगवान क्षीर सागर में क्षयन करते हैं और सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ला देवउठनी एकादशी पर श्रीहरि को जगाते हैं।

दे‌वउठनी एकादशी पर देवों को कैसे जगाएं और क्या गाएं
इस दिन मंत्रों के साथ भगवान विष्णु को जगाना चाहिए। प्रार्थना करनी चाहिए- हे गोविन्द । उठिए, उठिए हे कमलाकान्त! निद्रा का त्याग कर तीनों लोगों का मंगल करें। ऐसा कहकर सुबह के समय शंख ओर नगाड़े आदि बजाकर मधुर ध्वनि के साथ श्री विष्णु को उठाकर उनकी पूजा करें। देवों को जगाने के लिए फल, सिंघाड़े, गन्ना, आलू, मूली, तिल, आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद दीपक जलाकर थाली बजाकर देवों को जगाया जाता है। देवों को जगाने की परंपरा हर जगह अलग-अलग है, इसके लिए आंगन में गन्ने का मंडप बनाया जाता है और सुंदर अल्पना से रंगोली बनाते हैं।

इस दौरान कई तरह के पारंपरिक गीत भी गाते हैं।-जैसे

उठो देव, बैठो देव,पाटकली चटकाओ देव।
सबके काज संवारों देव
आषाढ़ में सोए देव,कार्तिक में जागो देव।
कोरा कलशा मीठा पानी, उठो देव पियो पानी।
हाथ पैर फटकारो देव,अंगुलिया चटकाओ देव।
क्वारों के व्याह कराओ देव,व्याहों के गौने कराओ देव।
तुम पर फूल चढ़ाए देव,घी का दिया जलाएं देव।
आओ देव पधारो देव,तुमको हम मनाएं देव।
जागो इस दुनिया के देव,गन्ने का भोग लगाओ देव। जागो उस दुनियां के देव,सिंघाड़े का भोग लगाओ देव।

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